मैं हिमालय हूँ

मैं हिमालय हूँ
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डॉ. विश्वम्भर प्रसाद सती

निर्मल, निश्छल और शांत
अनादि हूँ मैं और भी हूँ अनंत
शिव शक्ति का वास हूँ मैं, विष्णु का विहार भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

मेरे आँचल से निकली है गंगा
यमुना का उद्गम भी मैं हूँ
मैंने जन्मा है सिंधु को, ब्रह्मपुत्र की जननी भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

चौखंबा, त्रिशूल, कामेत, और नंदा देवी मुझसे निहित हैं
भारत का सिरमौर भी मैं हूँ
मेरे अनुग्रह से ही वेद लिखे हैं
मैं नर हूँ और नारायण भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

मैंने भारत को सींचा है
अंगिनत लोगों का भोजन भी मैं हूँ
शीत गर्मी को नियंत्रित करता हूँ
वर्षा का कारण भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

अनेक उथल-पुथल देखे हैं मैंने
जल प्रलयों का साक्षी भी मैं हूँ
विनाशकारी युद्धों को रोका है मैंने
भारत का प्रहरी भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

प्रलय काल में सप्त ऋषियों का साथी हूँ
मनु सतरूपा की क्रीड़ा स्थली भी मैं हूँ
पृथ्वी का तीसरा ध्रुव हूँ मैं
जल स्तंभ भी मैं हूँ।

मैं हिमालय हूँ
पांडवों के अज्ञातवास को देखा है मैंने
महाभारत का कृष्ण भी मैं हूँ
लक्ष्मण की संजीवनी हूँ मैं
ऋषि मुनियों की तपस्थली भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

ज्योतिर्लिंग, शक्ति पीठ, और सिद्ध पीठों को संवारा है मैंने
पंच बद्री, पंच केदार, और पंच प्रयाग भी मैं हूँ
देवालय, शिवालय, और शक्ति मंदिर समाए हैं मुझमें
देवों का चार धाम भी मैं हूँ
मैं हिमालय हूँ।

मैंने सिर्फ दिया ही तो है
जीवन दायिनी भी मैं हूँ
पर बदले में क्या मिला मुझे
मेरे हिमनद पिघल रहे हैं
मेरी नदियाँ सूख रही हैं
मेरी छाती को चीरकर तोड़ा गया है मुझे
अब मैं कराह रहा हूँ मुझे बचाओ
मेरे अस्तित्व को तुम ही सँवारो
मुझे बचाओ हे मनुष्य, हिमालय को बचाओ।

डॉ. विश्वम्भर प्रसाद सती सीनियर प्रोफेसर, मिजोरम विश्वविद्यालय, आइजोल

Tirth Chetna

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