व्यक्ति का बड़प्पन उसकी उपयोगिता में निहित
डा. वंदना खंडूड़ी ।
व्यक्ति का बड़प्पन और उसकी महानता समाज के लिए उसकी उपयोगिता में निहित होती है। संत कबीर दास के दोहे ’बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,’ पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर से इसे अच्छे से समझा और महसूस किया जा सकता है।
संत कबीर दास के इस दोहे ’जीवन-दर्शन को समझने और इसके मुताबिक आचरण करने की सीख छिपी है। उन्होंने सरल शब्दों में समझाया है कि केवल ऊँचाई या बाहरी भव्यता का कोई महत्व नहीं है जब तक वह समाज और दूसरों के लिए उपयोगी न हो।
इसमें खजूर के पेड़ का उदाहरण देकर यह समझाया गया है कि ऊँचाई का मतलब महानता नहीं होता। खजूर का पेड़ कितना भी ऊँचा हो, वह न तो राहगीरों को छाया दे सकता है और न ही उसके फल आसानी से मिल सकते हैं।
ठीक इसी प्रकार, किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि, धन या ऊंचाई तब तक बेकार है जब तक वह दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयुक्त न हो। दुनिया में कई लोग अपने धन, पद, या बाहरी रूप-रंग पर गर्व करते हैं। उन्हें लगता है कि वे दूसरों से श्रेष्ठ हैं, लेकिन जब तक उनकी ऊंचाई से समाज को कोई लाभ नहीं होता, वह गर्व निरर्थक होता है।
जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा तो होता है, लेकिन उसकी छाया किसी को राहत नहीं देती, उसी प्रकार किसी व्यक्ति का बाहरी आडंबर बेकार है जब तक वह दूसरों के लिए उपयोगी न हो। सच्ची महानता उस व्यक्ति में होती है जो दूसरों की मदद कर सके और समाज के लिए उपयोगी हो।
इतिहास के महान लोगों को देखें महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, मदर टेरेसा दृ इनकी महानता इनके विचारों और कार्यों में है, न कि केवल उनके पद या प्रसिद्धि में। इन्होंने समाज को बेहतर बनाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी। खजूर के पेड़ की तरह केवल ऊंचाई प्राप्त करना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हमारी ऊंचाई से दूसरे लाभान्वित हों।
इस दोहे का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है नम्रता और सेवा।खजूर के पेड़ की ऊंचाई उसे असहाय बनाती है क्योंकि वह दूसरों की सेवा करने में असमर्थ है। इसके विपरीत, एक बड़ा बरगद का पेड़, जो उतना ऊँचा नहीं होता, राहगीरों को ठंडी छाया देता है और पक्षियों को घोंसला बनाने के लिए स्थान प्रदान करता है।
इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि जो लोग विनम्र होते हैं और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, वे असल में महान होते हैं। कबीर के इस दोहे का एक और पक्ष यह है कि समाज में ऊँचे पद या संपन्न स्थिति में रहने वालों की जिम्मेदारी होती है कि वे अपने संसाधनों और ज्ञान का उपयोग समाज के भले के लिए करें।
जैसे कि एक ’शिक्षक-का-कर्तव्य’ है कि वह अपने ज्ञान से छात्रों का मार्गदर्शन करे, एक ’डॉक्टर का दायित्व है कि’ वह मरीजों का इलाज करे। अगर व्यक्ति केवल अपने ही जीवन में मस्त हो जाए और समाज की अनदेखी करे, तो उसकी ऊँचाई का कोई मतलब नहीं।
जीवन में सरलता और सहयोग का बहुत महत्व है। इस दोहे के माध्यम से यह संदेश भी मिलता है कि व्यक्ति को अपने बड़े होने पर गर्व नहीं करना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि उसकी उपलब्धियाँ दूसरों के जीवन में क्या सुधार ला रही हैं।
खजूर का पेड़ केवल अपनी ऊँचाई पर गर्व नहीं कर सकता, क्योंकि उसका अस्तित्व दूसरों के लिए बहुत कम उपयोगी है। कबीर दास जी के इस दोहे का मर्म यही है कि ऊँचाई या प्रसिद्धि का तब तक कोई महत्व नहीं जब तक वह दूसरों के लिए लाभकारी न हो।
व्यक्ति को अपने जीवन में केवल खुद के लिए नहीं बल्कि समाज के हित के लिए कार्य करना चाहिए। हमारी उपलब्धियाँ, शक्ति और संपत्ति तभी सार्थक हैं जब उनका उपयोग मानवता के भले के लिए हो। इस प्रकार, सच्ची महानता केवल ऊँचाई में नहीं, बल्कि सेवा और सहयोग में है।