पुटगू ( गढ़वाली कहानी )

पुटगू ( गढ़वाली कहानी )
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मंगतू ध्याड़ी करी कन आयी अर टकेरी मा बैठी कन सुस्ताण लगी, भीतर बिटी बड़ी नौनी गीता एक लुट्या पर पाणी लेकन अपर बुब्बा हत्थ पर पाणी पकड़ैन कन ब्वाल बुब्बा जी तुम पाणी पेकन हत्थ खुट्ट ध्वाव मी तुमकुणी एक गिलास चाय पाणी चुल्लू मा धरदू। मंगतू बेटी मुण्ड मलासी अर ब्वाल, बेटी एक गिलास ना सब्यूं कुणी बणै दे, तेरी मॉ त बिना चाय रै नी सकदी। पिताजी हमुन अब्बी कुछ देर पैली चाय पेकन भांड बकळैन।

मंगतू न ब्वाल बेटी इन करी तबरी म्यार हुक्का भर पैल मी जरा हुक्का गुड़गुडै दींद, कबरी बिटी टपास लगीं। गीता हुक्का भरी कर टकेरी मा धरी ग्यायी अर मंगतू घरवळी बीशा घास लेकन चौक मा ऐ ग्यायी। मंगतू अर बीशा द्वी झणी छुई बत्थ लगाण बैठीन, तबरी मंगतू द्वी होर नौनी सीता, रीता भी खेली कन ऐ गीन, द्वी माट मा धूळपट्टी बणी अयां छ्यायी। पैल ब्वे न द्वी गाळी देकन ब्वाल खडवणै कख लगी रायी तुमरी निरपटी, कख बिटी आणा छ्याव तुम तन खरणपट्टी जोगण बणी कन। ब्वे तै देखीकन द्वी नौनी डरद छन, मंगतू ब्वाल अरे बच्चा छन, यीं उमर मा नी खिलण उन कब खिलण।

जब मंगतू ब्यौ से पैली बुब्बा छोड़ी कन चली गे छ्यायी वैक मुण्ड मा द्वी भाई अर एक बैणी तै पळण पुसण से लेकन लिखाण पढाण बिटी ब्यौ कनै जिम्मेवरी ऐ गे छेयी, बुब्बा जांद ही वैन सरा जिमदर संभाळी दे छ्यायी, वैन भौत मेहनत कैरी कन खायी कमायी, दगड़ मा ब्वे सारू छ्यायी। बगत बीतत ग्यायी मंगतू ब्वे न मंगतू ब्यौ, 24 साल मा करी द्यायी। बीशा भी जिमदर ह्वाळ घर बेटी छेयी, त वीन भी सै सै करी कन मंगतू दगड़ी जिमदरू संभळण लगी ग्यायी। कुछ साल बाद मंगतू बैणी अर द्वी भाईयूं ब्यौं ह्वे कन सब्ब अलग अलग ह्वे गीन। मंगतू की तीन नौनी ह्वे गीन, अर अब उंते पळण पुसण से ज्यादा पढण लिखाण फिकर ह्वे ग्यायी। बीशा न मंगतू कुणी ब्वाल बिटलू ही त छन ज्यादा पढै भी क्या कन, भाग मा नौन हूंद त वै तै पढै लिखै कन हमर बुढपू भी कट जांद, यी त परायी घर क छन, यूंक सुख कथगा दिन दिखणन, पढै लिखै कन दूसर की घर जाण। यीं बात पर मंगतू बुल्द छ्यायी कि बीशा जमनू बदली ग्यायी, बेटी अर बेटा अब इकसणी छन, बेटी तै पढै लिखैकन द्वी घर मा उजळू करली। यीं बात पर द्वी झण्यूं मा तुड़म तुड़ा हूणा रैंदी छेयी।

बीशा मैती अर स्वार शरीख सदनी वीं तै ई बात सुणाणा रैंद छ्यायी कि अजों उमर ही क्या तुमर, एक बेटा तुम तै भगवान दें द्यांद त क्या बढिया छ्यायी। बीशा, मंगतू पैथर पड़ी जांदी छेयी। वैक बाद महादेव मंदिर मा जैकन घड़ चढायी अर भोलेनाथ आशीर्वाद से बीशा चौथ बार दुवास्था (गर्भवती) ह्वे ग्यायी। बगत बीतत ग्यायी, नौवां मैना लगी ग्यायी, मंगतू अपर काम धंधा मा रैंद छ्यायी वैक 18 साल मा ही अपर जिमदरू संभळयूं छ्यायी त ठोकर खैकन अक्ल ऐ गे छे।

मंगतू अपर बळदू जोड़ी लेकन ग्यूं बीज ठुपरी पर लेकन ग्यों ब्वाणा कुणी पुंगड़ मा चली ग्यायी, इनै बिशा तै स्वील्या पीड़ा शुरू ह्वे ग्यायी, गीता बड़ी बेटी गौं की दायी तै बुले कन आयी, कुछ देर मा गीता भाई ह्वे ग्यायी, सरा गौं मा खबर फैल ग्यायी कि मंगतू नौन ह्वे ग्यायी, भगवान उंकी सुणी याल। मंगतू काका नौन राजू तै मंगतू तै घर बुलाण खुणी ब्वाल, मंगतू पुंगड़ पर हळ लगाण पर लग्यूं छ्यायी। राजू न धार मा जैकन मंगतू तै धै लगायी ’’ हे मंगतू दा घर आव झट करी कन भाई ह्वे ग्यायी, बौ बुलाणी, मंगतू पैल द्वी सीयीं हळ फरकैन अर बळद पुंगड़ी किनर खड़ करी कन ब्वाल हॉ भाई क्या बुनै छेयी, राजू न ब्वाल भैजी बल झट घर आव, भाई ह्वे ग्यायी, मंगतू न ब्वाल अरे राजू पैल यन देखी कन आव कि वै भाई पर पुटुग भी छ, राजू समझी नी, वैन ब्वाल दादा तन मील नी द्याख, मितै बौ न लखायी, मंगतू न ब्वाल इन करी की पैल घर जैकन देखी कन आव, तबरी म्यार यी ग्यों बुयां छन यूं तै माटू मा मिलै दींद।

राजू भागी कन घर ग्यायी अर गीता कुणी ब्वाल बल त्यार बुब्बा बुनै कि पैल इन देख कि भाई पर पुटगू भी छ, जा भीतर देखी कन आदी, गीता भी सीध भीतर ग्यायी अर अपर ब्वे त पूछी कि हे मॉ भाई पर पुटगू भी छ, राजू काका बुना कि बुब्बा जी न पूछ कि इन देखी कन आव कि भाई पर पुटगू भी छ। बीशा समझी ग्यायी, स्वील्या पीड़ा दर्द मा भी हॅसण बगैर नी रायी। वीन ब्वाल कि अपर बुब्बा कुणी बोल कि तुम हळ लगै ल्याव पैल तब ऐ जैन। गीता न राजू काका कुणी ब्वाल कि भाई पर पुटगू छैंछ, उ भी दौड़ी कन फिर धार मा ग्यायी अर मंगतू तै धै लगै कन ब्वाल हॉ दादा भाई पर पुटगू छैंछ, तुम घर झट्ट करी कन, आव।

मंगतू न हळ लगांद लगांद ब्वाल कि चल अगर पुटग छैंछ त अब एक होर पुंगड़ी हो ग्यों ब्वे कन आंद। राजू समझी नी छ कि दादा बुलणा क्या छ, उ पुगंड़ मा ही ऐ ग्यायी। वैन ब्वाल भैजी बल सब खुश हुयां छन, अर तुम हळ लगाण पर ही मिस्यां छौं, लेकिन तुम पुटगू छैंछ यीं बात किलै पुछणै छ्याव, या बात बिंगण मा नी आयी।

मंगतू न ब्वाल भुला बात या छ कि भाई ह्वे ग्यायी, खुशी बात छ, लेकिन जिबर तकन उ बड़ू अर हत्थ खुट्ट लगद तबरी तकन होरू पुटगू भरण क जोड़ जंत त कन भी त जरूरी छ, हळ लगाण छोड़ी द्योल त खाण क्या छ। हम निम्न मध्यमवर्ग लोगू बॉट मा पैल काम कन जरूरी छ, जब भुला पुटगू भर्यूं रै करद तभी मुख पर चलक्वांस आंद, अर खुशी मनाण मा मजा आंद। भाई हूण खुशी दगड़ी वैक जिम्मेदरी भी निभाण, वैक पुटगू भी त भरण छ, इलै पैल काम कन जरूरी छ, जब हळ लगी जाल वैक बाद घर जैकन भाई तै देखी द्योल, काम पैल छ, बाकि सब्बि धाणी त लग्यूं धंधा छ। चल अब यूं बळदू तै भी भूख लगी ग्यायी, यूं पर भी पुटगू छ अपार देख कळं पर खड़ू ह्वे कन स्यूं हळ जू लेकन लौफयाणा छन। मंगतू बळद खुलीन अर नाड़ू कंधा मा धरी कन द्वी भाई घर जाणा कुणी बाटू लगी गीन।

©®@ हरीश कण्डवाल मनखी कलम बिटी।

Amit Amoli

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