प्रिंसिपल पद पर सीधी भर्तीः आखिर विचार आया कहां से

देहरादून। राज्य के सरकारी इंटर कालेजों में प्रिंसिपल के आधे पदों को परीक्षा से भरने का विचार आखिर आया कहां से। शिक्षकां के प्रिंसिपल पद पर प्रमोशन की व्यवस्था के बावजूद सरकार को सीधी भर्ती आखिर क्यों भा रही है।
इन खास सवालों के जवाब शिक्षकों के इर्दगिर्द हैं। दरअसल, राजकीय शिक्षक संघ शिक्षकों के हितों के तमाम मामलों की एडवोकेसी करने में चूकता रहा है। विभाग के दो कैडर बनने के वक्त ये चूक हो चुकी है। तब शासन ने शिक्षकों की हद प्रिंसिपल पद तक सीमित कर दी।
इसके बाद सरकार ने बड़ी चतुराई से हाई स्कूल के हेडमास्टर के फीडर कैडर (एलटी) में बेसिक/जूनियर शिक्षकों का कोटा तय कर दिया। परिणाम यहां अब खासा गढमढ़ हो गया है। अगले पांच सालों में ये गढमढ़ और अधिक स्पष्ट हो जाएगा।
इसके बाद अचानक डिप्टी ईओ का पद भी सृजित हो गया। सरकार ने मॉडल और अटल उत्कृष्ट स्कूलों में तैनाती के लिए शिक्षकों की लिखित परीक्षा ली। यहां तक कि उक्त स्कूलों के लिए प्रिंसिपलों को भी परीक्षा में बिठा दिया। कुछ शिक्षकों को लगता होगा कि उक्त परीक्षा पास कर उन्होंने कुछ खास हासिल किया। मगर, ऐसा दूर-दूर तक नहीं है। सब जानते हैं कि पांच सात माह मॉडल स्कूल को हो हल्ला मचा और बाद में यहां परंपरागत तरीके से शिक्षक आते-जाते रहे।
ऐसा है ही अटल उत्कृष्ट स्कूलों के साथ होने वाला है। प्रिंसिपल पद पर तो इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। दरअसल, शिक्षक विभाग और सरकार की बुनी हुई बातों में उलझते जा रहे हैं। शासन के सम्मुख शिक्षक तर्कों, जानकारी के साथ जाने के बजाए याचक की तरह जा रहे हैं।
शिक्षा को गैरजरूरी खर्च साबित करने को अमादा एक वर्ग इस बात को अच्छे से समझ चुका है। खर्च करने की सबसे अधिक गुंजाइश इस वर्ग को शिक्षा में ही लगती है। इसके लिए शिक्षा से जुड़े एक अनुभव को भी अक्सर ये वर्ग सामने रखता रहा है।
प्रिंसिपल के 50 प्रतिशत पदों को सीधी भर्ती से भरने का विचार भी ऐसा ही कुछ है। ऐसे में जरूरी है कि शिक्षक संघ तर्कों में धार, बातों में तथ्य को मजबूती से रखे।