आसान नहीं है प्रिंसिपल पद पर विभागीय परीक्षा कराना

आसान नहीं है प्रिंसिपल पद पर विभागीय परीक्षा कराना
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देहरादून। राज्य के सरकारी इंटर कालेजों के प्रिंसिपल के 50 प्रतिशत पदों को विभागीय परीक्षा से भरना आसान काम नहीं है। वजह ये मामला कई पेचदगियों को भरा हुआ है।

सरकार ने इंटर कालेज के प्रिंसिपल के आधे पदों को विभागीय परीक्षा से भरने का ऐलान कर दिया। इसके लिए जरूरी औपचारिकताएं भी पूरी की जा रही हैं। हां इसमें होमवर्क की कमी हर स्तर पर झलक रही है। बावजूद इसके सरकार इस मामले में आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रही है।

इसके पक्ष में सरकार से अधिक तर्क वो लोग दे रहे हैं जो स्वयं परंपरागत तरीके से प्रमोशन पाकर ऊंची पोजिशन पा चुके हैं। ऐसे तर्क सरकार को इस प्रयोग को जल्द से जल्द करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। सरकार भी जल्दबाजी में दिख रही है।

इस मामले को कैबिनेट से हरी झंडी मिलने और नियमो का ड्राफ्ट भी तैयार हो गया है। बावजूद इसके ये मामला कतई आसान नहीं है। दरअसल, राज्य की स्कूली शिक्षा की व्यवस्थाओं को सरकार ने इतना पेचिदा बना दिया है कि इसे सुलझाने के लिए कम से कम 10 साल का समय चाहिए।

बहरहाल, प्रिंसिपल पद को विभागीय परीक्षा से भरने की सबसे बड़ी पेचदगी एलटी और प्रवक्ता पद है। पांच साल की प्रवक्ता पद पर सेवा और पांच साल एलटी पद पर सेवा करने वाले दो शिक्षकों के प्रिंसिपल बनने के अनुभवों को अलग-अलग स्टमेट करना मुश्किल है। वजह दोनों का प्रमोशन का पद (हेड मास्टर ) एक ही है।

क्या प्रवक्ताओं को प्रिंसिपल पद के लिए वेटेज देने से हाई स्कूल के हेडमास्टर पद पर उनका 45 प्रतिशत कोटा बना रहेगा ? इसके अलावा प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के विभिन्न स्रोत भी इसमें और पेचदगियां जोड़ता है। इस बात को जानकार भी स्वीकार रहे हैं।

सरकार शिक्षकों से वार्ता कर बीच का रास्ता निकालने की बात कर रही है। मगर, बीच का रास्ते आगे चलकर और मुश्किलें खड़ी करेगा। सीटी कैडर को समाप्त करते वक्त भी तत्कालीन सरकार को इस बात का आभास नहीं हो सका था कि आगे चलकर तकनीकी पेचदगियां आ सकती हैं। बहरहाल, बेहतरी के नाम पर होने वाले ऐसे प्रयोगों के लिए जरूरी है कि पहले नियुक्ति का स्रोत एक किया जाए।

Tirth Chetna

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