ऋषिकेश का मेयर चुनाव कुछ बोलता है

तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। ऋषिकेश नगर निगम का चुनाव कुछ बोलता है। ये अनुशासन के नाम पर दबाई छिपाई बातों को सार्वजनिक कर रहा है। इसमंे मेयर पद को लेकर बड़ा विमर्ष खड़ा हो गया है।
राज्य गठन के बाद ऋषिकेश में नगर से लेकर लोकसभा तक की राजनीति द्विदलीय हो गई है। 2002 के विधानसभा, 2007, 12 और 2017 के विधानसभा चुनाव में कुछ निर्दलीयों ने दमखम दिखाया। 2002 में कांग्रेस और शेष सभी चुनावों में परिणाम भाजपा के पक्ष में ही रहा और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही।
इस बार के नगर निकाय चुनाव में माहौल अहम ब्रहमास्मि द्वितीयम नास्ति की मन स्थिति बना चुके लोगों को चुनौती देता लग रहा है। दरअसल, ऋषिकेश मेयर का चुनाव अब कुछ बोलने लगा है। इसको लेकर सामने आ रहे क्षेत्रीय विमर्ष को नसीहतों से कमजोर करने की रणनीति काम नहीं कर रही है।
हर नसीहत बाउंसर बनकर नसीहत देने वालों से टकराने लगी है। ऋषिकेश समेत पूरे उत्तराखंड की राजनीति में क्षेत्रीयता और जातियता ने कभी उभार नहीं लिया। हां, चुनाव के समय ये बातें होती रही हैं। ऋषिकेश के चार विधानसभा चुनाव का परिणाम इस बात का प्रमाण भी है। अब इसे कोई झुठलाकर बड़े वर्ग को नसीहत देने लगे तो क्या कहा जा सकता है।
दरअसल, ऋषिकेश में निकाय चुनाव और खासकर मेयर पद को लेकर लोगों के मन मंे तमाम बातें हैं। लोगों ने पिछले दो दशकों में बहुत कुछ देखा और महसूस किया। अब देखने, समझने और बोल सकने वालों को राजनीतिक तौर पर ठिकाने लगाने के जो कुछ उपक्रम हुए वो अब मेयर के चुनाव में जाग जाओ के रूप में सामने आ रही है।
ये आवाज अनुशासन के बाड़े से जरूर नहीं निकल सकती। हां, बाड़े के भीतर भी एक दिन लोकतंत्र जागेगा जरूर।