निकाय चुनावः निर्दलीयों के मंडाण में राजनीति के रणभूत
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। उत्तराखंड में चल रहे निकाय चुनाव में निर्दलीयों के मंडाण ने राजनीति के रणभूतों में बयाल फिरा दी है। ये बयाल कहीं मूल निवास तो कहीं ठेठ स्थानीय मुददों को लेकर।
निकाय चुनाव में भले ही स्तुति हेतु जागर न लग रहे हों। मगर, राजनीतिक मंडाण घर-घर सुनाई दे रहा है। इस राजनीतिक मंडाण का ढोल और नाकुण निर्दलीयों के हाथ में है। निर्दलीयों की ताल आम जन को खूब भा रही है। अब तो इस ताल पर राजनीति के रणभूत भी अपने फ्रीक्वेंसी को सर्च करने लगे हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव का जादू इस चुनाव में फिलहाल नहीं दिख रहा है। हां, ठसक के साथ कहा जा रहा है कि चुनाव 10 के बाद उठेगा।
फिलहाल चुनाव को निर्दलीयों ने उठा दिया है। राजनीतिक दल इस उठान को बुलबुला बता रहे हैं। हालांकि कई मुददे उन्हें अंदरखाने परेशान कर रहे हैं। 2027 की चिंता बड़ी है। बहरहाल, इसके लिए उन्हें राजनीति के ठेठ संघर्ष वाले जानकारों की खोजबीन कर उनसे बयाल फिराने का काम करना पड़ रहा है। ताकि उन पर भी निर्दलीयों जैसे कंपन और निर्दलीयों जैसे मुददे आ सकें। कारण निकाय चुनाव में दिल्ली और देहरादून मेड नारे काम ही नहीं कर पा रहे हैं। ये घर-वो घर भी अब कुछ डिमांड करने लगे हैं।
राज्य के नगर निगमों में मेयर/ पार्षद, नगर पालिका/ नगर पंचायत में अध्यक्ष/ सभासद पद के निर्दलीय प्रत्याशी अपनी बात को खुलकर जनता के सामने रख रहे हैं। उनके मुददों में राजनीतिक दलों के प्रत्याशी मुंह खोलते ही फंस रहे हैं। बात सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। इसे थामना फिर मुश्किल हो रहा है। यही नहीं राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान भविष्य के लिए सुरक्षित, संरक्षित भी होने लगे हैं।
बहरहाल, निर्दलीयों के मंडाण में इन दिनों राजनीति के रणभूतों के कई भाव दिख रहे हैं। कुछ नेता बाड़े के अंदर से बोल रहे हैं हम तुम्हारे साथ हैं। बस मंडाण की ताल ऐसी ही चलनी चाहिए। इसी में उनका मणिकांचन योग भी है।