निकाय चुनावः कैसे थमेगी बगावत
राजनीतिक दलों में नहीं रहा अनुशासन
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। निकाय चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों में दिख रहे और सुनाई दे रहे बगावत के स्वर थमते नजर नहीं आ रहे हैं। राजनीतिक दलों में में भी इस प्रकार की बगावत को अब बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यानि बगावत जैसी बातें अब राजनीतिक दलों में इनबिल्ड हैं। ।
अब सब राजनीतिक दल एक जैसे हैं। रीति/ नीति और विचार जैसा कुछ भी राजनीतिक दलों में नहीं है। राजनीतिक दल सिर्फ सत्ता के लिए हैं। सत्ता निकायों की हो या त्रिस्तरीय पंचायत की। राज्य की हो या फिर कंेद्र की। राजनीतिक दलों का सत्ता पर काबिज होना ही मकसद रह गया है।
इन दिनों राज्य में निकाय चुनाव चल रहे हैं। एक साल से अधिक समय के विलंब से हो रहे चुनाव में राजनीतिक दलों में जो कुछ दिख रहा है या सुना जा रहा है उस पर यकीन के साथ कहा जा सकता है कि राजनीति अब समाज सेवा का माध्यम कतई नहीं रह गई है।
टिकट न मिलने पर राजनीतिक दलों के नेता/ कार्यकर्ता बगावत कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं ने बगावत करना और बागी बनना अपने नेताओं से ही सीखा। राज्य की राजनीति में बगावत करने, नाराजगी दिखाने पर नेता मुख्यमंत्री बन गए, सांसद बन गए, राज्यपाल बन गए।
निकाय चुनाव में दिख रही बगावत में भी यहीं मंशा दिख रही है। बगावत करने वालों पर दलों का अनुशासन का डंडा नहीं चलता। दरअसल, राजनीतिक दलों के अनुशासन के डंडे पर अब जोर भी नहीं रहा।
एक दल का अनुशासनहीन कार्यकर्ता/ नेता दूसरे दल के लिए अतिप्यारा हो जाता है। जनता के बीच अच्छे पकड़ रखने वाले बगावती नेता की फिर दूसरे चुनाव में वापसी भी हो जाती है। मै घर लौट आया कहकर नेता फिर से उसी दल की तारीफ करने लगता है।
दरअसल, निकाय चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों में हो रही बगावत को उक्त दलों के दिग्गज नेता खास तवज्जो भी देते नहीं दिख रहे हैं। नेताओं ने ठसक के साथ जनता से जुड़े कार्यकर्ताओं के टिकट काटे। किसी को किसी बहाने ठिकाने लगाया। भाजपा और कांग्रेस में ऐसे तमाम कार्यकर्ता हैं जो अपने दलों के बड़े नेताओं में गंभीर आरोप लगा रहे हैं।