राज्य सरकारों की मोहताज छोटी सरकारें
सुदीप पंचभैया।
छोटी सरकारें यानि नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत हर मामले में पूरी तरह से राज्य सरकारों की मोहताज हैं। इस निर्भरता का असर नगरों में कई तरह से देखा और महसूस किया जा सकता है।
74 वें संविधान संशोधन से छोटी सरकारों यानि नगर निकायों को अधिकार संपन्न बनाने की बात कही गई है। करीब डेढ़ दर्जन कार्य सीधे निकायों को सौंपे गए हैं। इसमें नागरिकों को बेहतर सेवाएं देना, शहर को सुंदर और स्वच्छ बनाए रखना, शहरी नियोजन और नगर नियोजन करना, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए योजना बनाना, जल आपूर्ति, मलजल प्रबंधन, और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन करना, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए लाइसेंस जारी करना, दुकानों और बाज़ारों के खुलने-बंद होने की प्रक्रिया को नियंत्रित करना, स्वामित्व वाली ज़मीन और संपत्तियों का अभिलेख रखना, नई सड़कें बनाना,गलियां और नालियां बनाना ग़रीबों के लिए घर बनाना, बिजली का प्रबंधन करना,आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए योजना बनाना। घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल आपूर्ति। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था आदि कार्य शामिल हैं।
इसमें कितने कार्य पूरी तरह से निकायों के हवाले हैं। कितने कार्यों पर निकाय बोर्ड का निर्णय ही अंतिम होता है समझा जा सकता है। दरअसल, 74 वां संविधान संशोधन वास्तव में कभी उतरा ही नहीं। राज्य सरकारों ने इसमें बहुत रूचि नहीं दिखाई। प्रचार जरूर हुआ। कहा गया कि अब छोटी सरकारों को अधिकार संपन्न बनाया जाएगा। त्रिस्तरीय पंचायतों में भी ऐसा ही कुछ किया गया। वर्ष 1993 से इस पर लगातार बहस भी हो रही हैं।
छोटी सरकारों के प्रतिनिधि अक्सर इसको लेकर आवाज भी उठाते रहे हैं। बावजूद इसके छोटी सरकारों के अधिकारों में खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई। दावे किए जाते रहे कि 74 वें संविधान संशोधन से छोटी सरकार और बेहतर तरीके से काम करेंगी।
विकास और जरूरतें स्थानीय स्तर पर तय हो सकेंगी। मगर, ऐसा नहीं हुआ। यही वजह है कि 74 वें संविधान संशोधन के 32 साल बाद भी छोटी सरकारें राज्य सरकारों की मोहताज हैं। कई बार तो राज्य सरकारों की का इत्तर दबाव भी निकायों पर देखने को मिलता है।
कई बार निकायों के अच्छे कार्य भी राज्य सरकारों के राजनीतिक नफा नुकसान की भेंट चढ़ जाते हैं। छोटी सरकारों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की बात तो होती है। मगर, संसाधनों की बढ़ोत्तरी कैसे हो इस पर निकायों को बहुत ज्यादा अधिकार नहीं हैं। कई बार निकायों की आमदनी सरकार की राजनीति की भेंट चढ़ जाती है।
इन दिनों उत्तराखंड में निकाय चुनाव चल रहे हैं। उत्तराखंड तेजी से शहरों के राज्य में बदल रहा है। 25 साल में राज्य में नगर निगमों की संख्या 11 हो गई। नगर पालिका और नगर पंचायतों को भी जोड़ दिया जाए तो शतक पूरा हो चुका है।
राजनीतिक दल छोटी सरकारों में भी काबिज होना चाहते हैं। इसके लिए बड़े चुनाव जैसे तामझाम राजनीतिक दल लगा रहे हैं। दावे, घोषणाएं खूब हो रही हैं। चुनाव लड़ रहे नेता भी विकास से जुड़ी बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं। मगर, 74 वें संविधान संशोधन को पूरी तरह से लागू करने की बात किसी के मुंह से नहीं सुनाई दे रहा है। जनता के स्तर से भी इस पर सवाल नहीं हो रहे हैं। यही वजह है कि छोटी सरकारें पूरी तरह से राज्य सरकारों का निर्भर हैं।