भाजपा की आंतरिक राजनीति और निकाय चुनाव

भाजपा की आंतरिक राजनीति और निकाय चुनाव
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  • सुदीप पंचभैया।
  • उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर अब भाजपा की आंतरिक राजनीति में भी हलचल दिखने लगी है। इस हलचल से भाजपा के भीतर ही मारक विपक्ष तैयार हो रहा है। राज्य के कई निकायों में इसे देखा और महसूस किया जा सकता है।राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार पर समय से निकाय चुनाव न कराने का आरोप है। हालांकि सरकार के अपने तर्क हैं और कोर्ट में मामले की बात को सरकार आगे रख रही है। बहरहाल, राज्य के निकाय एक साल से अधिक समय से प्रशासकों के हवाले हैं। इससे शहरों की तमाम व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं। लोग इसके लिए भाजपा सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

    अब एक साल बाद राज्य में निकाय चुनाव की सूरत बनती दिख रही है तो भाजपा की आंतरिक राजनीति में हलचल मच गई है। ऐसी हलचल विपक्ष में कम दिख रही है। इस हलचल से भाजपा के भीतर यकीनी तौर पर मारक विपक्ष तैयार हो रहा है। ऐसा किसी एक नगर निगम या एक पालिका क्षेत्र मंे नहीं बल्कि अधिकांश देखा और महसूस किया जा सकता है। ये बात अलग है कि भाजपा संगठन केदारनाथ उपचुनाव में मिली जीत के बाद ऑल इज वेल गुनगुना रहा है।

    दरअसल, निकाय चुनाव में भाजपा की आंतरिक राजनीति में दिख रही हलचल की सबसे बड़ी वजह पार्टी का बड़ा कुनबा है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में लाभ लेने के लिए बढ़ाया गया कुनबा अब कई तरह से असर दिखाने लगा है। देश की तरह से उत्तराखंड मंे भी भाजपा ओवरलोड हो गई है। पहाड़ी राज्य में ओवरलोड से झोक और झोल आना सामान्य बात है।

    राजनीति में ये झोक और झोल ग्राम पंचायत, नगर के वार्ड, मेयर, अध्यक्ष सभी के चुनाव में असर दिखाते हैं। राजनीतिक झोंक और झोल से अधिक भाजपा के दिग्गजों खासकर विधायक और मंत्रियों की निकायों में अपने अग्गू भग्गुओं के लिए रास्ता साफ करने की मंशा से भाजपा के अंदर हलचल है।

    उत्तराखंड के एक-एक नगर निकाय में इन दिनों मेयर, पालिकाध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर आरक्षण को लेकर फूलझड़ी चल रही हैं। फूलझड़ी चलाने वालों में जनप्रतिनिधियों के ही खास समर्थक शामिल हैं। चर्चाएं हैं कि फलां नगर निगम में मेयर पद फलां के लिए आरक्षित हो गया। पार्टी किसे चुनाव लड़ाना चाहती है आदि आदि बातें खूब चर्चा में हैं।

    ये बात सच है कि चक्रीय आरक्षण लेकर समय-समय पर खेल होते रहे हैं। आरोप लग रहे हैं कि भाजपा के कुछ विधायक और मंत्री अपने क्षेत्रों के निकायों में इस प्रकार के प्रयास कर रहे हैं। उनके खास समर्थक इस प्रकार की बातें सार्वजनिक तौर पर करते भी हैं।

    ऐसा पार्टी के भीतर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियां और जनता में लोकप्रिय हो रहे कार्यकर्ताओं को ठिकाने लगाने की मंशा से किया जा रहा है। आरोप तो यहां तक लग रहे हैं कि इस खेल में वो संगठन भी शामिल है जिसकी राजनीतिक और सामाजिक तौर पर कुछ भी जवाबदेह नहीं होती। इससे भाजपा को निकाय चुनाव में नुकसान होने की आशंका बन रही है।

    दरअसल, भाजपा के भीतर निकाय चुनाव को लेकर जो हलचल चल रही है उससे विभिन्न दलों से पार्टी में आए नेताओं में बेचैनी है। उनके समर्थक भाजपा में स्वयं को अपेक्षित महसूस कर रहे हैं। निकाय चुनाव को लेकर भाजपा में चल रही राजनीतिक हलचल में वो पूरी तरह से हाशिए पर हैं। ऐसे में भाजपा के भीतर है मारक विपक्ष तैयार होने लगा है।

    भाजपा ने इसे समय रहते नहीं संभाला तो निकाय चुनाव में पहले बड़ी बगावत देखने को मिलेगी और फिर भीतरघात।

Tirth Chetna

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