आधुनिक भारत के निर्माण में महिलाओं की भूमिका

प्रो. मधु थपलियाल।
आधुनिक भारत के निर्माण में महिलाओं की भूमिका निसंदेह महत्वपूर्ण है। हाल के सालों में महिलाओं ने हर क्षेत्र में स्वयं की मेधा को साबित कर देश की बेहतरी में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
भारत परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों का अनुसरण करने वाला देश है। परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण में देश की महिलाओं की अहम भूमिका रही है। ग्रामीण अंचल में महिलाएं परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों तो हैं ही साथ ही समाज के मूल्यों की सजग प्रहरी भी हैं। महिलाओं के भीतर जन्मजात नेतृत्व के गुण का लाभ समाज को कई तरह से मिलता रहा है। हालांकि इसका मूल्यांकन बहुत देर से हुआ है।
बहरहाल, हाल के सालों में देखें तो महिलाओं हर क्षेत्र में स्वयं की मेधा को भी साबित किया है। उन्होंने पुरूष प्रधान समाज की अवधारणा पर अपने बेहतर कार्यों से सवाल उठाए। परंपरा के नाम पर समाज में पुरूषों को मिले खास अधिकारों को भी महिलाओं ने अपनी मेहनत को सूझबूझ से एक तरह से हाशिए पर धकेल दिया। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां महिलाएं देश की बेहतरी के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम न कर रही हों।
बेटियों/महिलाओं ने हर स्तर पर स्वयं को न केवल साबित किया बल्कि जिम्मेदारी से काम करने के मामले में महिलाओं आगे रही हैं। उनकी कार्यकुशलता, क्षमता और कार्य की क्वालिटी ने महिलाओं का लोहा मनवाया। स्कूल/ कॉलेज की मेरिट हो या फिर किसी बड़ी प्रतियोगी परीक्षा की मेरिट बेटियां बेहतर कर रही हैं। बेटियां अब समाज के आंखों की तारा बन चुकी हैं। इससे तमाम बदलाव समाज में देखे और महसूस किए जा सकते हैं। पित्रसतात्मक भाव कम हो रहा है। ये अच्छी बात है। बेटे ही उद्धारक होंगे इस भाव अब समाज में तेजी से कम हो रहा है।
ये सब कुछ महिलाओं ने समाज मंे व्याप्त तमाम कुरीतियों और भेदभाव का सामना करके प्राप्त किया। आज से चार-पांच दशक पूर्व समाज में महिलाओं की स्थिति क्या थी कहने की जरूरत नहीं है। बेटियों ने घर-परिवार में ही पग-पग पर सामाजिक भेदभाव को फेस किया। उनके आगे बढ़ने के अवसर पर परंपराएं हावी रही। मगर, वक्त बदल गया। इस बदलाव का झंडा महिलाओं ने अपनी मेहनत से बुलंद किया। हाल के सालों में सरकारों और समाज ने भी आधी आबादी की बात पर न केवल गौर किया है बल्कि उनकी बेहतरी और उन्हें सामाजिक, आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम किया है। समाज में बेटा-बेटी को लेकर जो भेद होता था वो काफी हद तक समाप्त हुआ है।
आजादी के बाद भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव आया है. महिलाएं अब शिक्षा, व्यवसाय, राजनीति, विज्ञान, कला, और खेल के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही है। हालांकि, अभी भी महिलाओं की स्थिति में सुधार की ज़रूरत है। शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के नारे को धरातल पर उतारा जा रहा है। महिलाएं जागरूक भी हुई हैंं। समाज में उनके हिस्से का विकास से लेकर समाज के निर्णयों में उनकी भूमिका पहले से मजबूत हुई है।
केंद्र सरकार और देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें महिलाओं की बेहतरी के लिए तमाम योजनाएं चला रही हैं। उत्तराखंड में स्वयं सहयता समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अच्छे कार्य हो रहे हैं। ये आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की पहल नहीं है। बल्कि सामाजिक तौर पर भी महिलाओं की भूमिका पहले से ज्यादा असरदार हुई है।
इस वर्ष महिला दिवस की थीम एक्सलरेट एक्शन यानि लैंगिक समानता के लिए शीघ्र और निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर देती है। वहीं, सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिकार, समानता, सशक्तिकरण थीम यह सुनिश्चित करने का संदेश देता है कि हर महिला और लड़की को समान अवसर और सम्मान मिले।