यूकेडी की कुर्सी नहीं छिनी राज्य में क्षेत्रीयता की जमीन खिसक रही है

यूकेडी की कुर्सी नहीं छिनी राज्य में क्षेत्रीयता की जमीन खिसक रही है
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देहरादून। क्षेत्रीय राजनीतिक दल एवं उत्तराखंड राज्य निर्माण में अहम रोल प्ले करने वाली यूकेडी का चुनाव चिन्ह कुर्सी नहीं रहा। ये उत्तराखंड के जनमानस पर बड़ा सवाल है। क्षेत्रीयता को हतोत्साहित कर शायद ही कोई राज्य आगे बढ़ सकें।

2022 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय राजनीतिक दल यूकेडी का स्कोर शून्य रहा। वोट प्रतिशत भी कम हो गया। परिणाम दल का चुनाव चिन्ह कुर्सी छिन गया है। दरअसल, चुनाव में यूकेडी नहीं हारी ये सीधे-सीधे उत्तराखंड की हार है।

यूकेडी का चुनाव चिन्ह कुर्सी नहीं छिनी बल्कि हमारी जमीन खिसक रही है। बस अंतर ये है कि यूकेडी का चुनाव चिन्ह ऑन रिकॉर्ड छिन रहा है और उत्तराखंड की जमीन बगैर रिकार्ड के। यूकेडी ही नहीं राज्य में एक्टिव अन्य क्षेत्रीय दलों का कमजोर होना किसी शोक से कम नहीं है। आने वाले दिनों में लोगों को इसको महसूस भी करेंगे।

लोग क्षेत्रीय दलों की कमियां गिनाते हैं। बेशक ऐसा है भी। इसको लेकर उन्हें कोसा भी जा सकता है और लोग बगैर वोट दिए कोसते भी हैं। हर दृष्टि से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नेताओं से योग्य क्षेत्रीय दलों के नेता हर चौराहे पर लोगों की सुनते भी हैं। कमियों को स्वीकारते भी हैं। लोगों के सुझावों पर गौर भी करते हैं। इन सबके बावजूद भी उन्हें वोट नहीं मिलता।

राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से लोग सवाल नहीं कर पाते। दरअसल, राष्ट्रीय राजनीतिक दल हमारे सवालों को दिल्ली में बनाए गए नारों से दबा देते हैं। हम पर खास प्रकार का मुलम्मा चढ़ा दिया जाता है। हम महंगाई और बेरोजगारी को भूल जाते हैं। हम संस्थागत अन्याय को चुनाव के दिन भी याद नहीं कर पाते।

कुल मिलाकर जिस दौर में देश की राजनीतिक क्षेत्रीयता तेजी से प्रभावी हो रही हो उस दौर में उत्तराखंड के लोग अपनी क्षेत्रीयता का उपेक्षित कर रहे हैं। राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड इसका खामियाजा भुगत रहा है। अब तो सिस्टम में भी उत्तराखंड की आवाज कुंद पड़ने लगी है। सुनवाई किसकी हो रही है और किसके इशारे पर होती है ये बताने की जरूरत नहीं है।

राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में क्षेत्रीयता को हतोत्साहित करना किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है। जनता को इस पर गौर करना चाहिए। युवाओं के मुददे हों या फिर जल, जंगल और जमीन की बात। सरकारी भ्रष्टाचार हो या लोगों के साथ अन्याय। यूकेडी के छोटे-बड़े नेता जनता के साथ दिखे। सिस्टम के निशाने पर यूकेडी के नेता रहे। मगर, वोट राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को मिला। ऐसे में तो क्षेत्रीय राजनीतिक दल हतोत्साहित ही होंगे।

Tirth Chetna

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