स्कूली शिक्षा के लिए संजीवनी साबित होगी पीएमश्री योजना
सुदीप पंचभैया।
सब कुछ केंद्र सरकार द्वारा तय उददेश्यों के मुताबिक हुआ तो पीएमश्री योजना कम से कम बेनियादी शिक्षा के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। इसको लेकर दिख रहे उत्साह से तो कम से कम यही लग रहा है।
देश में सरकारी स्कूल व्यवस्थागत खामियों के चलते दम तोड़ रहे हैं। समाज का सरकारी स्कूलों के प्रति मन अब पूरी तरह से खटटा हो चुका है। परिणाम बेहद योग्य और क्षमतावान शिक्षकों का लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, अभिभावक देख और समझ रहे हैं कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के उपर पढ़ाने से इत्तर अन्य कार्य लादे गए हैं। सिस्टम ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को इत्तर कार्यों में उलझा दिया है।
परिणाम सरकारी स्कूलों को लेकर समाज में नकारात्मक माहौल बन गया है। इसे बनाने में सिस्टम का बड़ा हाथ है। सरकारी शिक्षक हर किसी के निशाने पर है। जिम्मेदार लोग आए दिन उसके वेतन पर टिप्पणी करते हैं और इसकी देखा देखी समाज भी करता है। परिणाम शिक्षकों में भी अब हर फीक्र को उड़ता की मन स्थिति बन गई है। ये चिंता की बात है। शिक्षा में सिर चढ़कर बोल रहे बाजार के जादू की वजह से अभी इसके दुष्परिणाम को लोग महसूस नहीं कर पा रहे हैं।
सरकारी स्कूलों पर तमाम राज्य एक के बाद एक प्रयोग कर रहे हैं। प्रयोग के निष्कर्षों को समाने नहीं रखा जा रहा है। हर प्रयोग बाजार की खरीद और सरकार के खर्च कम करने और चुनाव पर केंद्रित होता है। हर प्रयोग की एक्सपाइरी डेट चुनाव होता है। बुनियादी शिक्षा की दुर्दशा की यही बड़ी वजह है।
इन सबके बीच केंद्र की नरेंद्रनगर मोदी सरकार पीएमश्री योजना को लाई है। युनियन कैबिनेट सात सितंबर 2022 को प्रधान मंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम श्री) योजना को हरी झंडी दी। इसके तहत देश भर में स्थित 14500 स्कूलों को अपग्रेड किया जाएगा।
करीब नौ हजार स्कूल इसके लिए चयनित कर दिए गए हैं। उत्तराखंड राज्य में पहले चरण में 142 स्कूलांे पर पीएमश्री का बोर्ड लगेगा। केंद्र पोषित इस प्रोजेक्ट पर पांच साल में 27 हजार करोड़ से अधिक खर्च किए जाएंगे। स्कूलों को तमाम आधुनिक संसाधनों से लेस किया जाएगा। ताकि सरकारी स्कूल संसाधनों के मामले में बेचारगी के खोल से बाहर निकल सकें। पीएमश्री स्कूल आस-पास के क्षेत्र के अन्य स्कूलों के लिए मॉडल का काम करेंगे। ये अच्छा कंसेप्ट है। हालांकि कई राज्यों में इस प्रकार के प्रयोग हो चुके हैं।
बहरहाल, पीएमश्री हर क्लास में हर बच्चे पर फोकस होगा। हर बच्चे कितना सीख पा रहा है। इसके लिए हर लेवल पर असेसमेंट्स होंगे जिनसे ये परखा जाएगा कि बच्चों को ये पता है या नहीं कि वे जो सीख रहे हैं उन्हें असल जीवन में कैसे इस्तेमाल करना है।
पीएमश्री योजना के तय उददेश्यों को यदि देश के राज्यों ने सही तरीके धरातल पर उतारा तो वास्तव में स्कूलों की सूरत बदल सकती है। समाज में सरकारी स्कूलों के प्रति बना नकारात्मक माहौल समाप्त हो सकता है। सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों में भरोसा लौट सकता है।
इसके लिए जरूरी है कि राज्य तय करें कि शिक्षकों से शिक्षणेत्तर कार्य नहीं लिए जाएंगे। शिक्षक सिर्फ पढ़ाएंगे। उन्हें नून-तेल और चौका-चूल्हे के हिसाब से मुक्त रखना होगा। हैप्पी स्कूल कंसेप्ट में छात्र ही नहीं बल्कि शिक्षक को भी शामिल करना होगा।
स्कूलों की मॉनिटरिंग के परंपरागत तरीकों को भी बदलना होगा।
स्कूलों का निरीक्षण विभाग के शैक्षिक कैडर वाले अधिकारी ही करें। स्कूलों, शिक्षकों/प्रधानाध्यापक/ प्रधानाचार्य के कार्याें के मूल्यांकन का तौर तरीका बदला जाए। यदि पीएमश्री स्कूलों में ऐसी तमाम बातों का ध्यान रखा जाए तो सरकारी स्कूलों में सकारात्मक माहौल बनते देर नहीं लगेगी।