समाज में पौधा रोपण घोटाला
हर वर्ष तमाम मौकों पर रोपे जाने वाले पौधे दूसरे साल दिखते ही नहीं हैं। ये पर्यावरण संरक्षण के प्रति नकली चिंता का प्रमाण है। यही नहीं ये किसी सामाजिक घोटाले से कम नहीं है।
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि आदर्श पर्यावरणीय स्थिति तेजी से छीज रही हैं। इससे बचाने के लिए सरकार से लेकर समाज तक चिंतित है। इसके लिए पर्यावरण दिवस, वन महोत्सव, उत्तराखंड हरेला पर्व पर हर वर्ष व्यापक पौधा रोपण किया जाता है।
हैरानगी की बात ये है कि हजारों हजार की संख्या में रोपे जाने वाले पौधे पेड़ नहीं बन पाते। यानि दूसरे वर्ष में आम तौर पर उसी स्थान पर पौधे रोपे जाते हैं जिस पर पिछले वर्ष रोपे गए थे। गत वर्ष रोपे गए पौधे की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
बहुत कम मामलों में गत वर्ष रोपे गए पौधे इस वर्ष भी दिखते हैं। स्पष्ट है कि पर्यावरण संरक्षण की गरज से होने वाले पौधा रोपण में गंभीरता का भाव कम है। दरअसल, सरकार इस पर गौर नहीं करती। एनजीओ, पर्यावरणविदों का रवैया भी ऐसा ही है और अब समाज भी इसमें शामिल हो गया है।
इस तरह से पर्यावरण संरक्षण के नाम पर नकली चिंता ही हो रही है। आदर्श पर्यावरणीय स्थिति अब और तेजी से छीज रही है। इसे समाज का पौधा रोपण घोटाला कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। समाज को इस पर गौर करना चाहिए। सिस्टम द्वारा रोपे गए पौधे भले ही न दिखें, समाज के स्तर पर होने वाले पौधा रोपण का असर दिखना चाहिए।