रणनीति के नाम हो रही पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा

देहरादून। दिल्ली से नियंत्रित राजनीतिक दल चुनावी रणनीति के नाम पर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं। परिणाम पार्टी के बड़े नेता भरोसा खो रहे हैं और दलों में आया राम गया राम हो रहा है।
लोकतंत्र की राजनीति में जनता सर्वोपरि होती है। ऐसा कहा जाता है, सुना जाता है और किताबों में भी लिखा है। उक्त बातें अक्षरशः सच नहीं है। इसमें बहुत सी बातें रसूखदारों, बड़े औहदेदारों के हिसाब से तिय होती हैं।
बहरहाल, इन दिनों उत्तराखंड समेत देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहा है। विधायक कौन बनेगा ये जनता से पहले राजनीतिक दल तय कर रहे हैं। उत्तराखंड में तो दिल्ली से नियंत्रित होने वाले राजनीतिक दल जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं।
पूरे पांच साल जनता की सेवा में लगे रहने वाले अपने ही कार्यकर्ताओं को दल पीछे धकेल रहे हैं। ऐसा चुनावी रणनीति के नाम पर किया जा रहा है। दलों के पास ऐसा न जाने क्या फार्मूला है कि उन्हें जनता के बीच काम करने वाला अपना कार्यकर्ता कमजोर लग रहा है। परिणाम राजनीतिक दलों के झंडे-डंडे उठाने वाले कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं।