हिमाचल के चुनाव में सरकारी शिक्षक/ कर्मचारियों ने दिखाया दम

हिमाचल के चुनाव में सरकारी शिक्षक/ कर्मचारियों ने दिखाया दम
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सुदीप पंचभैया।

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों और उनके परिवारों ने पॉलिटिकल क्लास को अपनी ताकत दिखा दी। पुरानी पेंशन बहाली को संसद से लेकर हिमाचल की पगडंडियों तक में सिरे से नकारने वाली भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

जीवन के अधिकांश हिस्से को राज्य की सेवा में लगाने वाले देश के सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों की पेंशन बंद करने का श्रेय भाजपा को जाता है। भाजपानीत एनडीए सरकार ने इसे राष्ट्र हित के नाम पर बंद किया था। 2004 के बाद केंद्र में आई कांग्रेस ने भी इसे आगे बढ़ाया। पेंशन के बदले एनपीएस की व्यवस्था जब सामने आई तो देश भर के सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों ने इसका विरोध किया।

जब विरोध तीखा हुआ तब तक केंद्र में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार आसीन हो गई। तमाम ऐसे मुददे आगे आ गए जिससे ओपीएस का मुददा एक तरह से दब गया या दबा दिया गया। भाजपा सरकार पिछले करीब नौ सालों से देश के शिक्षक/कर्मचारियों की पुरानी पेंशन की मांग को दो टूक अंदाज में नकार रही है।

इसको लेकर सरकार के तमाम तर्क भी हैं। भाजपा सरकार के तर्कों को वित्त विशेषज्ञ अपने हिसाब से मजबूती देते रहे हैं। 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा को मिली सफलता से लगा कि इस मुददे को भाजपा ने पूरी तरह से पचा दिया है। हालांकि इस बीच, कांग्रेस ने इसको लेकर गलती स्वीकारी और राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आसीन पार्टी की सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल कर दी।

झारखंड और पंजाब में भी पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है। हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों से वादा किया कि सत्ता में आते ही पुरानी पेंशन बहाल करेंगे। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में वादे पर खरी उतरी कांग्रेस पर हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों और उनके परिवारों ने भरोसा किया।

हिमाचल प्रदेश में सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों और उनके परिवारों ने एकजुटता दिखाई और अपने भविष्य के लिए सरकार बदल दी। अब कांग्रेस हिमाचल में सत्तारूढ़ हो चुकी है। उसे स्पष्ट बहुमत मिला है। अच्छी बात ये है कि चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस को पुरानी पेंशन बहाल करने की बात पूरी तरह से याद है।

भाजपा को भी लगने लगा है कि हिमाचल में ओपीएस ने उससे सत्ता छीन ली। ये बात अलग है कि अभी भी भाजपा ओपीएस को लेकर अपने पुराने रवैए पर ही अडिग है। भाजपा हिमाचल की हार को वोट प्रतिशत के अंतर के आइने से देख रही है। ये देखा जाना चाहिए कि एक प्रतिशत से कम अंतर में भाजपा की 15 सीट कम हुई हैं। यदि दो प्रतिशत होता तो क्या स्थिति होती।

हिमाचल प्रदेश के सरकारी शिक्षक/कर्मचारियों ने ओपीएस को लेकर अन्य राज्य के सरकारी कर्मचारियों को राह दिखा दी है। माना जा रहा है कि अब देश भर के शिक्षक/कर्मचारी इस पर एकजुट होंगे। राजनीति के जानकार भी इस बात को मान रहे हैं। विशेषज्ञ मान रहें है कि 2024 में होने वाले आम चुनाव में पूरे देश में इसका असर दिख सकता है।

2023 में मध्य प्रदेश में भी इसका असर दिख जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए हैरानगी की बात ये है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के बाद तमाम वित्त विशेषज्ञ पुरानी पेंशन बहाली के दुष्परिणाम गिनाने लगे हैं। एक खास खाके वाले आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर फोकस कर रहे हैं कि पेंशन देने पर राज्य कंगाल हो जाएंगे।

उक्त अर्थ विशेषज्ञ उद्योगपतियों को दी जाने वाली रिहायतों पर चुप्पी साधे हुए हैं। पुरानी पेंशन से राज्यों पर आने वाले आर्थिक बोझ के आंकड़े दिए जा रहे हैं। मगर, बैंक घोटालों, उद्योगों के बेल आउट पैकेज और चुनाव में होने वाले वास्तविक खर्चों, विकास योजनाओं की लीकेजों का कोई आंकड़ा नहीं दिया जा रहा है।

यही नहीं सरकार चलाने के नाम पर मंत्री, विधायकों की सुविधाआें पर होने वाले खर्चों का हिसाब लगाने की हिम्मत कोई आर्थिक विशेषज्ञ नहीं जुटा पा रहा है। यही वजह है कि अब आर्थिक विशेषज्ञों को भी एक वर्ग शक की निगाह से देखने लगा है।

Tirth Chetna

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