सरकारी शिक्षक/कर्मचारी ही कर सकते हैं जिम्मेदारी वाले काम

ऋषिकेश। निर्वाचन जैसे बेहद जिम्मेदारी वाले कार्यों को सही से अंजाम सिर्फ और सिर्फ सरकारी शिक्षक/कर्मचारी ही दे सकते हैं। बावजूद इसके व्यवस्था प्राइवेटाइजेशन की रटट लगा रही है। इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इन दिनों देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। इन चुनावों को शांतिपूर्ण, निष्पक्षता, साफ सुथरे तरीके से कराने का जिम्मा सरकारी अधिकारी, शिक्षक/कर्मचारी/ शिडयूल बैंक कर्मी/ पुलिस/ पैरामिलिटरी फोर्स पर है। सब कई दिनों से इस काम लगे हुए हैं।
भारी बर्फबारी के बीच भी सरकारी अधिकारी/कर्मचारी चुनाव के काम को कर रहे है। इस पर भी अधिकारी आए दिन हांके पर हांके लगा रहे हैं। अब तो ऐसे सरकारी शिक्षक/ कर्मचारी चुनाव कराने का जिम्मा उठा रहे हैं जिन्हें पेंशन भी नहीं मिलेगी। हां, जिनके चुनाव के लिए कर्मचारी रात दिन लगे हुए हैं वो माननीय शपथ लेते ही आजीवन पेंशन के हकदार हो जाएंगे।
बहरहाल, चुनाव के अलावा सरकारी कर्मचारी ही वेलफेयर स्टेट का अभास कराते हैं। प्राइवेट सेक्टर वेलफेयर स्टेट का दूर-दूर तक आभास नहीं कराते। बावजूद इसके व्यवस्था पर सब कुछ प्राइवेट करने की धून सवार है। अनुभवों के साथ कहा जा सकता है कि चुनाव जैसे पेचदगी भरे काम को व्यवस्था का नैन तारा प्राइवेट सेक्टर नहीं करा सकता है।
ऐसा नहीं है कि प्राइवेट सेक्टर में योग्य और काम के प्रति समर्पित कर्मी नहीं होते। दरअसल, प्राइवेट सेक्टर सिर्फ मुनाफे का काम करता है। उसके कार्य लाभ-हानि पर आधारित होते हैं। सरकार के भजराम हवलदारी के काम बगैर किसी हौसलाफजाई के करने का धैर्य सिर्फ और सिर्फ सरकारी कर्मचारियों पर ही हो सकता है।