देवभूमि उत्तराखंड से नई शिक्षा नीति 2020 का शंखनाद

देवभूमि उत्तराखंड से नई शिक्षा नीति 2020 का शंखनाद
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प्रो. एमएम सेमवाल

नई शिक्षा नीति 2020 का शंखनाद करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है। इससे शिक्षा के माध्यम से राज्य की बेहतरी को शासन की संजीदगी प्रदर्शित होती है। शिक्षा को लेकर ये संजीगदी देवभूमि उत्तराखंड में ज्ञान की समृद्ध परंपरा का हिस्सा भी है।

कहते हैं शिक्षा किसी देश का अमूल्य आभूषण है , जिसमें जितने रत्न जड़े जाएं उतना ही कम है और समान रूप से उसे पहनने वाले की खूबसूरती भी बढ़ती जाती है । अतः इसमें किये जाने वाले सकारात्मक बदलाव हमेशा ही कम लगते हैं। नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसे आप दुनिया को बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं । “ इसलिए शिक्षा के माध्यम से ही दुनिया की तमाम विषमताओं का खत्मा किया जा सकता है ।

वर्तमान समय में ऐसे अनेक नवोन्मेषी कार्यक्रम किये जा रहे हैं जिससे नौनिहालों को उनके भावी जीवन के लिए तैयार किया जा सके । इसकी झलक हमें नई शिक्षा नीति में देखने को मिली है जिसमें शिक्षा की वर्तमान तथा भविष्य की जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है ।

शिक्षा के संबंध में गांधी जी ने कहा था कि ’ शिक्षा का आशय बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है।’ इसी प्रकार शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया के रूप में संचालित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि विद्यार्थियों को अंततः सर्वांगीण पूर्णता की प्राप्ति हो सके ।

शिक्षा नीति- 2020 भारत की नवीन शिक्षा नीति है जिसे भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। सन 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया परिवर्तन है । यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है। इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई । बदलते वक्त की जरूरतों के अनुसार नई शिक्षा नीति को लागू करना भी आवश्यक हो गया जिसकी आवश्यकता काफी लंबे वक्त से महसूस की जा रही थी।

शिक्षा के भारतीय विचार में राष्ट्रीयता ,भाषायी वैविध्य ,सांस्कृतिक वैभव , अकादमिक मौलिकता ,अन्तः अनुशासनात्मकता तथा सर्व समभाव अंतर्निहित है । नई शिक्षा नीति सनातन अक्षुण्ण भारत वैशिष्ट्य का समर्थ प्रकटीकरण है । नई शिक्षा नीति की इसी मूल भावना को ध्यान में रखते हुए मंगलवार 12 जुलाई से उत्तराखंड में लागू किया गया है । जिसका लक्ष्य प्रदेश में शत – प्रतिशत नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को तय समय पर पूर्ण करना है ।

इसके अंतर्गत सर्वप्रथम विद्यालयी शिक्षा के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को शुरू किया जायेगा। जिसकी तैयारियों में विद्यालयी शिक्षा विभाग काफी समय से जुटा हुआ है । एक कार्यक्रम के रूप में शिक्षा महानिदेशालय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बालवाटिकाओं का उद्घाटन कर सूबे में नई शिक्षा नीति का विधिवत शुभारम्भ किया। जिसके साथ ही उत्तराखंड एनईपी लागू करने वाला देश का पहला राज्य भी बन गया ।

राज्य के समस्त जनपदों में विकासखंड स्तर पर चिन्हित को-लोकेटेड आंगनबाड़ी केन्द्रों में वृहद रूप से बालवाटिकाओं का क्षेत्रीय विधायक एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा उद्घाटन किया गया , जिसमें शिक्षाविद्, अभिभावक एवं छात्र-छात्राओं ने शामिल होकर यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि राज्य में एनईपी को लेकर कितना उत्साह एवं जागरूकता है ।

इसके प्रथम चरण में शिक्षा विभाग के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों में संचालित पांच हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों में बालवाटिका कक्षाओं का संचालन शुरू किया जाना है । राज्य में प्री-प्राइमरी स्तर पर बालवाटिकाओं में बच्चों को एनईपी के प्रावधानों के तहत पढ़ाया जायेगा। जिसके के लिये पाठ्यक्रम तैयार कर लिया गया है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ( एससीईआरटी ) द्वारा आंगनवाडी कार्यकर्त्रियों एवं शिक्षकों के लिये हस्तपुस्तिका, बच्चों के लिये तीन अभ्यास पुस्तिका स्वास्थ्य, संवाद एवं सृजन तैयार की गई है।

प्रदेश नेतृत्व का यह निर्णय वास्तव में उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि इसके लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय मुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने दिया है वह इस संदर्भ में अभूतपूर्व है । क्योंकि जिस तरह के निर्णय माननीय शिक्षा मंत्री द्वारा लिये जा रहे हैं वे सुधार काफी समय से लंबित थे । चाहे वह विद्यालयों को कलस्टर के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया हो या फिर कम विद्यर्थियों की संख्या वाले स्कूलों के शिक्षकों का दूसरी जगह समायोजन या फिर विद्यालयों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने निर्णय , इन्हें हमेशा राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर अधर में रखा जाता था किंतु इस बार कड़े फैसले लिए जा रहे हैं ताकि व्यवस्था में जम चुकी वर्षो की धूल को साफ किया जा सके ।

शिक्षा पर किया गया निवेश हमेशा भविष्य में मुनाफा देता है , इसका आशय है कि जो योजना आज लागू की जा रही है उसके परिणाम आने वाले दस से बीस सालों में देखने को मिलेंगे । इसलिए यह एक दीर्घावधि कार्यक्रम है जिसको संयम के साथ संचालित किया जाना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद का कहना था कि’ मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।’ इसलिए राज्य सभी विद्यार्थियों को अपने अंतरचित्त की अभिव्यक्ति को प्राप्त करने का अवसर इसके माध्यम से दिया जा रहा है ।

 राज्य में सामान्यतः सैनिक और शिक्षण के पेशे में ही अधिकतर लोग जुड़े हुए हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से इस तरह के प्रयासों से इस क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर उत्पन्न होने की भी संभावना दिखती है । नई योजना को जिस तरह से विकेन्द्रीकृत योजना के रूप में संचालित करने का लक्ष्य रखा गया है उससे निश्चित ही शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि होने की अपार संभावना है । लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे कदम हैं जिनसे इसके लक्ष्यों को अधिक असानी से प्राप्त किया जा सकता है , इसमें एससीईआरटी , डायट ( जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान ) जैसी संस्थाओं को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाने की आवश्यकता है ताकि वे जमीनी स्तर से बदलाव की मुहिम शुरू कर सकें।

                                                                             लेखक- एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान के प्रमुख हैं।

Tirth Chetna

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