नए जिलों के गठन की बात कहीं शिगूफा तो नहीं
22 साल में तहसीलें हुई दुगनी,नहीं बना एक भी नया जिला
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। उत्तराखंड में नए जिलों के गठन की बात कहीं शिगूफा तो नहीं। पूर्व में भी ऐसा होता रहा है। शिगूफों से ही सरकारें जिलों की मांग की आवाज को दबाती रही हैं। ये क्रम आगे भी चलता रहेगा।
22 साल में तहसीलों की संख्या दुगने से अधिक करने वाले उत्तराखंड राज्य में एक भी नया जिला नहीं बना। राजनीतिक मिजाज बताता है कि आगे भी इसकी संभावना ना के बराबर हैं। दरअसल, छोटे राज्यों की एडवोकेसी करने वाले छोटे जिलों का विरोध करते हैं।
छोटे राज्य मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक बनने के लिए होते हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं का इससे मतलब होता है। यही वजह है कि जनता की सुविधा के लिए नए जिलों के गठन की बात गंभीरता से कभी नहीं हुई। 2010/11 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिलों की घोषणा की।
भाजपा को ये घोषणा इतनी नागवार गुजरी की डा. निशंक की सीएम पद से विदाई हो गई। उनके बाद सीएम बनें जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने सबसे पहले चार नए जिलों की फाइल दबाई। कांग्रेस के शासन में भी जिला-जिला खूब खेला गया। मगर, हुआ कुछ नहीं।
2017 में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा ने 2010/11 में हुई चार जिलों की घोषणा पर मुंह नहीं खोला। हां, पार्टी ने राज्य को तीन मुख्यमंत्री जरूर दिए। हां, एक मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को कमिश्नरी घोषित किया। कमिश्नरी की घोषणा करते ही उन्हें उसी तर्ज पर सीएम पद से हटा दिया गया जैसे जिलों की घोषणा करने वाले सीएम को हटाया गया था।
अब एक बार फिर से नए जिलों की बात हो रही है। मगर, इसको लेकर जनता में खास प्रतिक्रिया नहीं है। दरअसल, लोग जानते हैं कि हकीकत क्या है। राज्य में नए जिलों का गठन सिर्फ शिगूफा होता है। इस बार ये शिगूफा सरकार बनने के पहले ही साल में क्यों छोड़ा गया, इस बात को भी लोग अच्छे से समझ रहे हैं।