आकार में बारीक और पोषक तत्व में मोटा है कोदा और झंगोरा

सुदीप पंचभैया ।
मोटे अनाज के नाम पर पहचाने जाने वाले कोदा, झंगोरा, बाजरा आदि आदि वास्तव में बारीक अनाज हैं। यदि इन अनाजों के साथ मोटा शब्द सम्मान के तौर पर लगा तो ठीक है। मगर, हेय दृष्टि के चलते मोटा अनाज कहा गया तो अब वक्त बदल रहा है।
बीज बचाओ के विजय जड़धारी की यही टिप्पणी है। उनका कहना है कि आज के दौर में समाज में प्रचलित गेहूं, चावल आदि के मुकाबले तो कोदा, झंगोरा आदि आकार में बारीक हैं। हां, पोषक तत्वों की मौजूदगी के मामले में जरूर मोटे हैं। जड़धारी कहते हैं कि वास्तव में पोषक तत्व से भरपूर उक्त अनाजों को मोटा हेय दृष्टि के चलते कहा गया।
उत्तराखंड राज्य की बात करें तो पिछली सदी के 60 के दशक के बाद पहाड़ी समाज में मोटा अनाज कोदा, झंगोरा हेय दृष्टि का शिकार हुआ। इसकी बड़ी वजह शैक्षणिक जागरूकता और पश्चिम अंधानुकरण रहा है। क्षेत्र में ज्यों-ज्यों शिक्षा का प्रसार हुआ वैसे-वैसे परंपरागत पोषक तत्व से भरपूर कृषि उपज उपेक्षित होने लगी। परिणाम कई मोटे अनाजों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। मगर, अब बाजी पलट गई।
गोरे गेहूं पर हमारा काला कोदा भारी पड़ने जा रहा है। विश्व स्तर पर मिलेट वर्ष मनाया जा रहा है। इसके तहत लोगों को मोटे अनाज के लाभ से रूबरू कराया जा रहा है। इसके लिए वर्षों से काम कर रहे लोगों में उत्साह है। बीपी शुगर में लाभादायक कोदा, झंगोरा रसोई में जगह बनाने लगा है।
दरअसल, गेहूं-चावल के रूप में शरीर में जा रहा अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट लोगों को बीमार बनाने लगा है। ज्वार, बाजरा, कोदा और झंगोरा इससे काफी हद तक लोगों को निजात दिला सकता है। डायटीशियन भी अब इसकी सलाह देने लगे हैं। हालांकि अभी ये सफर शुरू भर हुआ है। इसमें सतत विकास के दरकार है।
अच्छी बात ये है कि तमाम सरकारी संस्थान इस काम में लग गए हैं। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी में संचालित अखिल भारतीय समन्वित मोटा अनाज शोध परियोजना ने इस पर अच्छा काम किया है। मोटे अनाज का रकवा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं।
उत्तराखंड में कोदा खरीद को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दे दी है। केंद्र सरकार द्वारा मोटे अनाज (मण्डुआ) के 0.096 लाख मीट्रिक टन की प्रोक्यूरमेंट की अनुमति मिलने से राज्य में मिलेट (मोटा अनाज) उत्पादन करने वाले किसानों को बङा लाभ मिलेगा। किसानों से खरीद कर मिड डे मील और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बच्चों और लोगों को उपलब्ध कराया जा सकेगा।
इससे राज्य के किसानों की आय में बढोतरी तो होगी ही साथ ही स्कूलो के बच्चों और ज़रूरतमंदों को पौष्टिक आहार भी मिलेगा। 0.096 लाख मीट्रिक टन के प्रोक्यूरमेंट की अनुमति दी है। यह प्रोक्यूरमेंट भली भांति हो, इसके लिए खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग, मंडी परिषद, सहकारी समितियों, महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग को आपसी समन्वय से काम करने के निर्देश दिये गये हैं। इसमें जिलाधिकारियों की विशेष भूमिका रहेगी। मण्डुवा के प्रोक्यूरमेंट की यह अनुमति फसल वर्ष 2022-23 के लिए दी गई है। मण्डुवा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3574 रूपये प्रति कुन्तल निर्धारित है।
यह राज्य सरकार द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों के कृषकों की आमदनी बढ़ाने हेतु अभिनव प्रयास सिद्ध होगा। प्रथम चरण में राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में पायलेट योजना के अन्तर्गत जनपद अल्मोड़ा एवं पौड़ी के कृषकों से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मण्डुवा खरीद योजना लागू की जायेगी। क्रय किये गये मण्डुवा को प्रथम चरण में राज्य के मैदानी जनपद ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार एवं देहरादून तथा नैनीताल जनपद के मैदानी क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत वितरित किया जायेगा।