नौकरी घोटालाः सरकारी अधिकारी/कर्मचारी जैसा एक्शन नेताओं पर क्यों नहीं
देहरादून। काम में उदासीनता, अनियमितता संबंधित छोटे-बड़े मामले में सरकारी अधिकारी/कर्मचारियों को निलंबित किया जाता है। मगर, संवैधानिक पदों पर आसीन नेताओं पर ऐसे एक्शन नहीं होते।
ताजा मामला यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले का है। इस मामले यूकेएसएसएससी के अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया। आयोग सचिव रहे संतोष बडोनी को पहले इस पद से हटाया गया और अब निलंबित कर दिया गया है। सरकार का ये अच्छा कदम है। इस पूरे मामले में आयोग के अधिकारी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।
जनता में ऐसे अधिकारियों को लेकर नाराजगी भी है। युवा बेरोजगार शुरू से ही अधिकारियों के तौर तरीकों पर सवाल भी खड़े करते रहे हैं। बहरहाल, ऐसे मामलों में जो एक्शन अधिकारी/कर्मचारियों पर होते हैं वैसा संवैधानिक पदों पर आसीन नेताओं पर नहीं होते।
उनके मामले को नैतिकता पर छोड़ दिया जाता है। नेता नैतिकता अपने हिसाब से तय करते हैं। राजनीति की नैतिकता सत्ता पक्ष और विपक्ष की अलग-अलग होती है। ताजा मामला विधानसभा में बंटी सरकारी नौकरियों का है। तीसरी विधानसभा में हुई नौकरियों की बंदरबांट पर चौथी विधानसभा ने जानबूझकर गौर नहीं किया।
सब जानते हैं कि 2017 में भाजपा ने इस मामले को चुनाव में खूब भुनाया। सत्ता में आने पर भाजपा ने इस पर चुप्पी साध ली और तीसरी विधानसभा में हुई नौकरियों की बंदरबांट दोहरा दी। यही नहीं इसे नियमानुसार बताया जा रहा है। भाजपा नेता के मुंह से ये बात सुनकर हर कोई हैरान है।
दरअसल, ऐसा कर जनता का मुंह चिढ़ाया जा रहा है। कुल मिलाकर नेताओं की ऐसी स्वीकारोक्ति के बाद भी कोई एक्शन नहीं होता। इसको लेकर अब समाज में सवाल उठ रहे हैं। नेताओं की कथित नैतिकता को लेकर लोगों में गुस्सा है।