अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एवं मातृ भाषा’

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एवं मातृ भाषा’
Spread the love

डा. सुमन कुकरेती।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विभिन्न वजहों से लुप्त होती भाषाओं को संरक्षित करने और इनका संवर्द्धन कर विश्व को भाषाई तौर पर समृद्ध बनाने की कवायद है। इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।

आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। यूनेस्को की पहल के फलस्वरूप प्रति वर्ष 21 फरवरी को विविध भाषाओं की धरोहर को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। सर्वप्रथम यूनेस्को द्वारा 17 नवंबर 1999 को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। तदनंतर वर्ष 2000 में इसे विश्व भर में मनाया जाने लगा।

21 फरवरी को यह दिवस मनाने का विचार रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था। उन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के समय ढाका में 1952 ईस्वी में हुई हत्याओं को याद करने के लिए 19 फरवरी की तिथि प्रस्तावित की थी। निश्चित रूप से इस पहल का लक्ष्य विश्व के विभिन्न राष्ट्र की सांस्कृतिक, बौद्धिक, भाषाई विरासत की सुरक्षा करना एवं मातृ भाषाओं का संरक्षण करके उन्हें बढ़ावा देना है।

विश्व में बोली जाने वाली अनेक भाषा-बोलियों में से कुछ भाषाएं लुप्तप्राय हैं, कारण कुछ ही भाषाओं का उपयोग डिजिटल जगत में किया जाता है। भौतिकवादी समय में रोजगार प्राप्त करने के लिए विदेशी भाषा सीखने की मनोवृत्ति मातृ भाषाओं के लुप्त होने का कारण बनती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 का विषय ’बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोगः चुनौतियां और अवसर’ है।

जन्म से हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वही हमारी मातृभाषा है; इसी के साथ पल-बढ़कर हम संस्कार तथा व्यवहार प्राप्त करते हैं। निश्चित रूप से हमारी अपनी मातृभाषा हमारी अमूल्य धरोहर है जो हमें संस्कारों से जोड़ कर रखती है।
व्यक्तित्व का सहज विकास मातृभाषा द्वारा ही संभव है क्योंकि यह हमारे संवेगो से जुड़ी भाषा है। बाल्यकाल से जिस भाषा के साथ हम बढ़ते हैं वह हमारे व्यक्तित्व को साकार करती है। मातृ भाषा के साथ बने रहना अपने अस्तित्व को बचाए रखने के समान है।

जिस तरह मातृभाषा में अपने भाव अथवा विचारों को प्रकट किया जा सकता है वैसा अन्य किसी भाषा में सम्भव नहीं है। जरूरत इतनी है कि किसी भी तरह हम अपनी मातृ भाषा को जिलाये रखें और उसको अपनी आने वाली पीढ़ी तक पहुंचायें। भारतेंदु जी ने सटीक कहा है- ’बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल’।

                                                                            लेखिका उच्च शिक्षा में हिन्दी की प्राध्यापिका हैं।

Tirth Chetna

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *