वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान का दर्शन

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संविधान दिवस पर विशेष

डा. सोनिया कौशिक

आज संविधान दिवस है। आज ही के दिन 1949 को भारतीय संविधान दस्तावेज के रूप में सामने आया था। कहा जा सकता है कि विश्व के महानतम कानूनी अभिलेखो की सांझी विरासत का परिणाम यह शक्तिपुंज अब से 76 वर्ष पूर्व आज ही के दिन भारत की लोकतंत्र की आत्मा के नाम से जाना जाने वाला भारतीय संविधान बना ।

299 सदस्य (विभाजन पूर्व 389), 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन, 11 सत्र और 165 बैठकें। इतिहास में पहली बार विभिन्न, जाति, धर्म, संप्रदाय में बंटा यह भूभाग पहली बार संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र बना। देश का संविधान सिर्फ कानूनी संग्रह ही नहीं अपितु भारत का वह जीवंत दर्शन जिसने प्रस्तावना में राष्ट्र प्रेम और अखंड भारत का संकल्प सभी भारतीयों को ’हम भारत के लोग’श् जैसे महत्वपूर्ण शब्दों के साथ कराया हो।

भारतीय संविधान तो 26 नवंबर 1949 को बना, परंतु वैदिक समय से ही ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में शासन व्यवस्था का उल्लेख मिलता है , कौटिल्य के अर्थशास्त्र, पाणिनि के अष्टाध्याय के साथ साथ ऐतरेय ब्राह्मण और मनुस्मृति मे भी शासन और उसके नियमों की बात कही गई है।

अपने संविधान निर्माण की बात करें तो राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान ज्यादातर विद्वान कानूनी जानकारी के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और दर्शन को बचाना अपनी जिम्मेदारी समझते थे, उदारवादी और उग्रवादी विचारधाराओं के चलते आभास होने लगा था कि एक संविधान आवश्यक है।

1935 के इंडिया एक्ट से लेकर 26 नवंबर 1949 के संघर्षशील परिणाम से भारतीय संविधान बन भी गया। परंतु सोचने वाली बात यह है कि जिस संविधान को बनाने के लिए बी एन राव ने संवैधानिक सलाहकार के रूप में अलग-अलग देशों में भ्रमण किया, डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, सच्चिदानंद सिन्हा अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए डॉ भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में ड्राफ्ट कमेटी भी बना दिए। क्या इसी भारत को समग्र एवं शक्तिशाली बनाने के लिए उन्होंने इतने प्रयास किए।

संविधान बनने के 76 वर्ष बाद भी क्या हम सबको सम्मान के साथ समानता का अधिकार मिला। भ्रष्टाचार जैसा राक्षस खत्म हो पाया या जातिवाद जैसी गंभीर समस्याओं से निजात दिला पाए। संविधान को समझने व समझाने का उत्तम कार्य नेताओं द्वारा जनता की भीड़ को प्रत्यक्ष लोकतंत्र को विजयीभव बनाने हेतु ईमानदारी के साथ बेईमानी ढंग से किया जाता है। दोनों खुश। क्योंकि पढ़ाई लिखाई के झंझट कौन करें। संविधान की कसम खाने वाले भी जानते हैं कि असल जिंदगी में उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। उनके हिसाब से संविधान वह है जो हम कहते हैं बस आपका काम है उसे सुनना।

डॉ भीमराव अंबेडकर अपने कार्यकारिणी के साथ भक्ति और हीरो पूजा की राजनीति को सबसे बड़ा खतरा बताते थे। जो लोग राजनीतिक दलों और धर्म को देश से ऊपर रखेंगे तो देश का खतरा बढ़ेगा ही। लेकिन हमने इन समस्याओं को इतनी गंभीरता से नहीं लिया, कहीं पर भक्ति को राजनीति बना लिया और कहीं हर पार्टी का अपना मसीहा। किसी के लिए नेता भगवान और किसी के लिए नेता आधुनिक उच्च शैली की पहचान।

26 नवंबर 2015 से पहले संविधान दिवस के बारे में हम सभी कम ही जानते होंगे। संविधान कार्यकारिणी के बाद आज के संवैधानिक सलाहकार सुभाष कश्यप , महान कानून ज्ञाता डीडी बसु एवं सीमा जौहरी भी बियर एक्ट का समग्र आंकलन करते हुए अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हुए सोचते होंगे कि हमने भी संविधान के प्रचार एवं ज्ञान को युवा पीढ़ी तक ले जाने का उत्तम कार्य किया।

तो आओ हम सब प्रचार प्रसार करें, और संविधान दिवस को इस प्रकार मनाए जैसे कि संविधान एक व्यक्ति के रूप में हमारे सामने आकर खड़ा हो गया हो, टीवी चैनल पर संविधान की बड़ी-बड़ी खबरें, प्रख्यात राजनीतिज्ञ एवं कानूनविदों की संविधान को लेकर बहस, विद्यालय महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं द्वारा निबंध और वाद विवाद प्रतियोगिताएं और हम सभी संविधान दिवस के बैनर के सामने प्रस्तावना की शपथ लेते हुए संविधान को महसूस कराए कि हम तुम्हारे ही कर कमलों पर चल रहे हैं।

Tirth Chetna

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