हम दो, हमारे दो, सबके दो, जिसके दो उसी को दो
विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष
स्वामी चिदानंद सरस्वती।
अब समय आ गया है कि भारत में रहने वाले सभी परिवारों पर ’हम दो, हमारे दो, सबके दो’ यह लागू हो। जिसके दो बच्चें हैं उसी को सरकार की ओर से दी जाने वाली सुविधायें मिले अर्थात ’जिसके दो बच्चें हों उसी को सुविधायें दो’ क्योंकि यह देश के उज्वल भविष्य के लिए यह बहुत जरूरी है।
आज हम विश्व जनसंख्या दिवस मना रहे हैं परन्तु अब बात संख्या की नहीं संसाधनों की हैं क्योंकि संसाधन नहीं तो सुरक्षा नहीं; समृद्धि नहीं; संस्कृति नहीं और संतति भी नहीं बचेगी इसलिये हम सभी को इस पर ध्यान देना होगा।
2013 में प्रयागराज महाकुंभ में आयोजित धर्म संसद में ’’हम दो, हमारे दो, सबके दो, जिसके दो उसी को दो’ का संदेश दिया गया था। अब समय आ गया कि अब यह धर्म संसद तक ही सीमित न रहे बल्कि यह संसद का भी धर्म बने’’। हमें चिंतन करना होगा कि जनसंख्या बढ़ रहीं हैं परन्तु हमारे पास रहने के के लिये जमीन कहां हैं? शुद्ध वायु, शुद्ध जल कहां हैं? इसलिये दो बच्चों से अधिक वालों को सरकारी सुविधाओं को प्राप्त करने का अधिकार, वोट देने का अधिकार, सरकारी नौकरी आदि प्राप्त न हो नहीं तो बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
भारत के पास पूरी दुनिया का लगभग 2.4 प्रतिशत भूभाग और केवल चार प्रतिशत जल है परन्तु दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी भारत में रहती हैं। वही दूसरी ओर दुनिया की आबादी आठ अरब के आंकडें को भी पार कर चुकी है भारत सहित पूरी दुनिया की तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या व जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ व समस्यायें बहुत बड़ी है इसलिये अब जनसंख्या नियंत्रण के लिये समान नागरिक संहिता भी लागू किये जाने की नितांत आवश्यकता है।
भारत में विस्थापन, बीमारी, बेरोजगारी, शुद्ध पेयजल का अभाव, प्रदूषण, अशिक्षा और भूखमरी जैसी अनेक समस्याओं का मुख्य कारण जनसंख्या की वृद्धि है। इस समस्याओं पर गंभीरता से चितंन करने की जरूरत है। देश की एक बड़ी आबादी बीमारी, बेरोजगारी और मौलिक सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन कर रही हैं।
भारत सरकार इस पर कार्य भी कर रही हैं परन्तु जनसंख्या का बोझ इतना है कि उन स्थितियों से उबरना बहुत कठिन हो रहा है। ये तो वे समस्यायें हैं जिनका सामना कर रहे हैं इसलिये यह सब को दिखायी भी दे रही हैं परन्तु हमारे सामने उससे भी बड़ी समस्या हैं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन।
पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा उत्पादित 74 प्रतिशत से अधिक जैविक संसाधनों का उपयोग करते हैं अर्थात् हम प्राकृतिक संसाधनों का 1,75 गुना अधिक तेजी से उपयोग कर रहे हैं जिससे जैविक संसाधनों के क्षेत्र में हम बहुत घाटे की स्थिति में हैं। अगर हम इसी प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते रहे तो हमें 3.6 पृथ्वी की आवश्यकता होगी।
अब हम सभी को अपने जीवन जीने के तरीकों और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। हमारी धरती माँ केवल सीमित दर पर ही संसाधनों का पुनर्जनन कर सकती है लेकिन हम हर साल इस दर से ज्यादा इसका उपयोग कर रहे हैं। हमें यह बात याद रखना होगा कि पृथ्वी प्राकृतिक व जैविक संसाधनों का पुनर्जनन अपनी क्षमता के अनुसार कर रही हैं परन्तु हमारा उपभोग अधिक है इसलिये हम बचे हुए संसाधनों का दोहन करते हैं, जिससे स्थिति और भी खराब होती जा रही है। जैविक संसाधनों के स्तर पर हम घाटे में चल रहे हैं और इसे हम हल्के में भी ले रहे हैं।
हमारी पृथ्वी को नवीकरणीय संसाधनों को नवीनीकृत होने के लिए समय चाहिए। यदि उपयोग दर नवीनीकरण दर से अधिक है अर्थात् हम संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं यही अर्थ ओवरशूट है।
भारत की विशाल आबादी का पेट भरने के लिए कृषि हेतु जमीन कम पड़ रही हैं। ज्यादा पैदावार के लिये रसायनिक खादों, कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है जिससे कैंसर जैसी भयावह बीमारियाँ बढ़ती जी जा रही है। दूसरी ओर परिवार बढ़ते ही जा रहे हैं, परिवारों में सदस्य बढ़ते जा रहे हैं जिससे घरों के बटवांरे, खेती व जमीनों के बटवांरे हो रहे हैं जिससे प्रति परिवार कृषि योग्य भूमि निरंतर घटती चली जा रही है जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ रहा है।
भारत व आने वाली पीढ़ियों के उज्वल भविष्य के लिये तेजी से बढ़ रही जनसंख्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसलिये जरूरी है हम दो, हमारे दो, सबके दो -जिसके दो उसी को दो।