हरीश रावत की कद्दू छुरी और नासमझ उडयारी पहाड़ी किशोर उपाध्याय

हरीश रावत की कद्दू छुरी और नासमझ उडयारी पहाड़ी किशोर उपाध्याय
Spread the love

ऋषिकेश। कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कद्दू छुरी वाले बयान पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्यक्ष ने स्वयं को नासमझ उडयारी पहाड़ी बताते हुए तमाम बातों पर प्रकाश डाला है।

अपने फेस बुक वाल पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने एक-एक बात स्पष्ट की है। अपने बड़े भाई हरीश चन्द्र सिंह रावत जी सम्भवतः झिझक से या सम्बन्धों की मर्यादा का पालन करते हुये नाम लेने में संकोच कर गये और मैं उनका आभारी हूँ, “अनन्य सहयोगी” जैसे सम्बोधन के लिये।

उनकी दो बातों “कद्दू छुरी में गिरे या छुरी, कद्दू में गिरे” और देखते हैं, कहाँ तक संयम साथ देता है, ने मेरे दिल और दिमाग़ में दहशत तो नहीं, लेकिन, कौतूहल सी गुदगुद्दी पैदा कर दी है। आप लोग इन दोनों बातों का मर्म समझिये।अब वे धमकी देने पर भी आ गये हैं।

“कद्दू”पर तो वे 17 बार छुरी कर चुके हैं। मैं मुख्यतः टिहरी विधान सभा पर आता हूँ और जितनी विधान सभाओं का उन्होंने ज़िक्र किया है, उन पर बाद में आऊँगा। मैं टिहरी की जनता का आभारी हूँ, उन्होंने दो बार मुझे विधान सभा पहुँचाया।नासमझ उडयारी पहाड़ी होने के कारण मैं अवसरों का कभी लाभ नहीं उठा पाया।

नहीं तो पुण्यात्मा राजीव जी ने मुझे 1985 में गौरीगंज से चुनाव लड़ने के लिये कहा था। 2012 के विधान सभा चुनाव में एक नहीं अनेक षड्यन्त्र कर बेईमानी से या यों कहिये अपनी ना समझी से मैं चुनाव हार गया कैसे? उस पर भी कभी बाद में।

चुनाव हारने के बाद लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं, लेकिन, षड्यन्त्र से 377 वोटों से चुनाव हारने के बाद भी मैं कांग्रेस की सरकार बनाने के अभियान में जुट गया।बसपा के विधायकों से सम्पर्क किया।एक निर्दलीय विधायक का समर्थन कांग्रेस के लिये जुटाया।

सरकार बनने के बाद सबसे अधिक नुक़सान मुझे उठाना पड़ा। मैं अपने विधान सभा में जब-जब सक्रिय होता, तब तक दिल्ली से संदेश आता कि कांग्रेस की सरकार निर्दलियों पर टिकी है, सरकार गिर जायेगी, इसलिये आप टिहरी में इंटरफेयर न करिये।खुद की बनायी सरकार को गिराना, क्या उचित होता।

कांग्रेस की सरकार होने पर भी सबसे उपेक्षित टिहरी विधान सभा का कांग्रेस वर्कर रहा। मेरी हृदय से कामना थी कि हरीश चन्द्र सिंह रावत जी को उत्तराखंड का मुखिया होने का एक अवसर अवश्य मिलना चाहिये और उसके लिये मुझ से जो हो सकता था, सब प्रयत्न किये।उस पर भी बाद में कभी चर्चा करूँगा नहीं तो विषयांतर हो जायेगा।

जब रावत जी के सीएम बनने की बात चल रही थी तो टिहरी के निर्दलीय विधायक का समर्थन भी चाहिये था, लेकिन कितना। मैंने फिर नासमझी का एक भावुकता का निर्णय लिया और रावत जी से कहा कि आप मुख्यमंत्री बनिये, टिहरी के विधायक जी को कह दीजिये मैं यह बलिदान भी करूँगा, वे ही वहाँ से चुनाव लड़ें।

जिस दिन टिहरी के विधायक को सीएम रावत ने मन्त्री बनाया, सुबह मैंने उनसे किसी मसले पर बात की, उन्होंने मुझे नहीं बताया कि वे टिहरी के विधायक जी को मंत्री बना रहे हैं। टिहरी के विधायक के मन्त्री बनने की जानकारी मुझे शपथ के बाद एक पत्रकार मित्र ने दी। मेरी क्या मनोदशा हुई होगी? आप समझ सकते हैं।

Tirth Chetna

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *