ऐसा/ कैसा सिर्फ सरकारी शिक्षकों के साथ ही हो सकता है

देहरादून। प्रमोशन के नाम पर ऐसा/कैसा सिर्फ सरकारी शिक्षकों के साथ ही हो सकता है। सरकारी शिक्षक भी ऐसे/कैसे के नाम पर भी बंटे हुए हैं। यहीं पर प्रमोशन की परंपरागत व्यवस्था छीजने लगती है और बाद में प्रमोशन का पद नॉन टीचिंग की श्रेणी में चला जाता है।
किसी भी सरकारी विभाग में आयोग से चुनाव गया अभ्यर्थी विभागीय सेवा में आने के बाद वरिष्ठता/श्रेष्ठता के आधार पर प्रमोशन पाकर आगे बढ़ता है। यूपीएससी से आईएएस कैडर में चुने जाने वाला अभ्यर्थी राज्य में मुख्य सचिव और केंद्र में कैबिनेट सचिव के अंतिम पद तक पहुंचता है।
उत्तराखंड राज्य में डिग्री कॉलेज का प्राध्यापक राज्य लोक सेवा आयोग से चुने जाने के बाद विभाग का निदेशक तक बनता है। इंटर कालेजों में एलटी और प्रवक्ता आयोग से चुने जाने के बाद भी प्रमोशन के लिए तरस जाते हैं। अब तो प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा की बात भी होने लगी है।
इस तरह से कहा जा सकता है कि ऐसा/कैसे सिर्फ सरकारी शिक्षकों के साथ ही हो सकता है। जब एक बार शिक्षक आयोग से चुनकर आ गया तो उसे प्रमोशन के लिए उसकी परीक्षा क्यों ली जानी चाहिए। आखिर सरकार क्यों नहीं मानती कि 10/12 साल की सेवा के बाद शिक्षक अनुभवी हो गया। हैरानगी की बात ये है कि हर बार की तरह शिक्षक इस मामले में बंटे हुए हैं।
ऐसा अक्सर होता रहा है। इसी का परिणाम है कि प्राथमिक से लेकर इंटर कालेज तक के शिक्षकों के प्रमोशन के चांस बेहद सीमित हो गए हैं। जो मौके उपलब्ध हैं वो विवाद की भेंट चढ़ गए हैं। अब इंटर कालेज के प्रिंसिपल के 50 प्रतिशत पद पर विभागीय परीक्षा से क्या गुल खिलता है ये देखने वाली बात होगी।