राजकीय बालिका इंटर कॉलेजों में नहीं रही पहले जैसी विशिष्टता
देहरादून। राजकीय बालिका इंटर कॉलेजों में अब पहले जैसी विशिष्टता नहीं रही। परिणाम उक्त स्कूलों की व्यवस्थाओं में हर स्तर पर झोल दिखने लगे हैं। ये झोल सिस्टम को नहीं दिख रहा है।
यूपी के दौर में राजकीय बालिका इंटर कालेज कुछ खास होते थे। इनकी मॉनिटरिंग के लिए मंडल स्तर पर व्यवस्था होती थी। आरआईजीएस (मंडलीय निरीक्षक गर्ल्स स्कूल) का पद होता था। यहां से शुरू होने वाली इन स्कूलों की विशिष्टता शिक्षकों की नियुक्ति तक में दिखती थी।
स्कूल के माहौल से लेकर अनुशासन में भी इसकी झलक देखने को मिलती थी। अनुमान के मुताबिक सहशिक्षा के स्कूलों और बालिका शिक्षा के स्कूल में पदों का अनुपात 50ः1 का होता था। यानि जब सहशिक्षा में शिक्षकों के 50 पद होते थे तब बालिका स्कूलों में एक पद होता था। यानि बालिका स्कूल में शिक्षिकाओं की भर्ती में उच्च मेरिट वाले ही आ पाते थे।
शिक्षकों की भर्ती में अभी भी ऐसा ही है। हां, अब बालिका स्कूलों की संख्या बढ़ गई है। साथ ही सहशिक्षा के स्कूलों को महिलाओं के लिए भी खोल दिया गया है। बालिका स्कूल में में तैनात शिक्षिकाओं के प्रमोशन के चांस अभी भी बेहद सीमित हैं।
मॉनिटरिंग से समाप्त हुई गर्ल्स स्कूलों की विशिष्टता अब शिक्षिकाओं की तैनाती तक आ पहुंची है। विभाग ने विशिष्ट प्रकार के इन स्कूलों में एलटी के पदों को बेसिक के 30 प्रतिशत कोटे से पाटना शुरू कर दिया है। इसके लिए किस बात को आधार बनाया गया अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है।
हां, ऐसी व्यवस्था से तमाम झोल दिखने लगे हैं। इन झोलों की शिक्षा विभाग अनदेखी कर रहा है। बेसिक का एलटी में 30 प्रतिशत कोटे की विभाग के स्तर से समीक्षा भी शायद ही हुई हो।
हैरानगी की बात ये है कि इस पर शिक्षकों ने भी कभी सवाल नहीं उठाए। हां, अब इसको लेकर चर्चा जरूर होने लगी है।