आने वाले हैं अच्‍छे दिन, कोरोना से नहीं पड़ेगा डरना

आने वाले हैं अच्‍छे दिन, कोरोना से नहीं पड़ेगा डरना
Spread the love

वासिंगटन। संक्रामक रोग विज्ञान में संचारी रोगों की रोकथाम के स्तर की परिभाषाएं दी गई हैं। नियंत्रण का अर्थ है वैक्सीन जैसे जनस्वास्थ्य उपायों से किसी बीमारी को संचरण के कम स्तर पर ले आना। इसी प्रकार उन्मूलन से आशय है-क्षेत्र विशेष में रोग संबंधी मामले घट कर शून्य पर पहुंच जाना। समूल नष्ट करने का मतलब है समूची दुनिया में रोग के मामले शून्य पर आ जाना। और रोग के खत्म हो जाने का अर्थ है कि सुरक्षित प्रयोगशालाओं में बचे जीवाणु के अंश भी नष्ट हो गए। 1979 में चेचक रोग दुनिया में समूल नष्ट हुआ था। इसका कारण केवल वैक्सीन नहीं थी, बल्कि इसके लक्षण इतने स्पष्ट थे कि इन्हें पहचानना आसान था। इसका संक्रमण कुछ अवधि के लिए ही रहता था। साथ ही एक बार संक्रमण होने पर व्यक्ति में जिंदगी भर के लिए इसके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती थी। खसरा कभी समूल नष्ट नहीं किया जा सका। अत्यधिक संक्रामक श्वसन संबंधी यह वायरस 1963 में तब नियंत्रण में आया, जब इसकी वैक्सीन बनी। अमरीका में वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या अत्यधिक रही, जिससे इसका तकनीकी रूप से उन्मूलन हो गया।

कोविड-19 वायरस का अंत चेचक या खसरे जैसा नहीं होगा। अत्यधिक संक्रामक होने के साथ ही इसमें ऐसे लक्षण हैं, जो अन्य श्वसन संबंधी संक्रमण से मिलते-जुलते हैं। साथ ही एसिम्प्टोमैटिक मरीज लक्षण आने से पहले भी दूसरे को संक्रमित कर सकते हैं। जैसे-जैसे वैक्सीन लग रही है, वैसे-वैसे वायरस नियंत्रित हो रहा है। धीरे-धीरे यह वायरस स्थानीय बीमारी में बदल जाएगा। मतलब यह फैलेगा तो सही, लेकिन क्षेत्र विशेष में और काफी कम दर पर। जैसे इन्फ्लुएंजा या राइनोवायरस से सर्दी जुखाम होता है, ये मौसमी बीमारियां हो सकती हैं। आमतौर पर ये महामारी के स्तर तक नहीं फैलतीं। चूंकि वैक्सीन कोविड-19 की रोकथाम में प्रभावी है। वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी स्वत: समाप्त हो जाती हैं, लेकिन शरीर में बी कोशिकाओं के तौर एक स्मृति विकसित होती है, जो वायरस या उसके वैरिएंट को दोबारा देखने पर एंटीबॉडी पैदा करती हैं। ये बी कोशिकाएं शरीर में लंबे समय तक रहती हैं। 2008 में नेचर के एक अध्ययन के मुताबिक 1918 के इन्फ्लुएंजा से जंग जीतने वालों में नब्बे साल बाद भी प्रतिरोधी बी कोशिकाएं सक्रिय पाई गईं। वैक्सीन से मानव शरीर को मिलने वाली टी कोशिकाएं भी गंभीर रोगों से बचाती हैं और ये वैरिएंट पर भी कारगर हैं। चूंकि वायरस का संचरण जारी है, ऐसे में बुजुर्गों और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को बूस्टर शॉट देने की जरूरत होगी।

तो कोविड-19 का आम बीमारी वाला स्वरूप क्या होगा? अगर हम दुनिया भर में वायरस का संचरण निम्नतम स्तर पर ले आएं और वैक्सीनेशन से उसकी गंभीर रोग देने की क्षमता कम कर दें, तो दुनिया सच में पहले जैसी सामान्य हो जाएगी। फिर संक्रमण वहां फैलेगा,जहां लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते, जैसा खसरा रोग में हुआ। वैक्सीन की अनिवार्यता वैक्सीन लेने वालों की संख्या बढ़ा सकती है। इस तरह वैक्सीन के साथ स्वाभाविक रूप से आई रोग प्रतिरोधक क्षमता कोविड-19 को भी उसी तरह काबू में कर लेगी, जैस अन्य श्वास संबंधी वायरस को काबू में किया गया। भविष्य में अस्पतालों में श्वसन रोगियों की जांच में कोविड-19 जांच शामिल हो जाएगी, मरीज को आउटडोर में सर्दी-जुकाम वाले मरीज की तरह ही दवाएं दी जाएंगी। कोविड-19 कितना भी जटिल वायरस क्यों न हो, एक सत्य यह भी है कि कोई भी वायरस एक सीमा के बाद नए वैरिएंट विकसित नहीं कर सकता। एचआइवी एड्स के मामले में हम यह देख चुके हैं।

Amit Amoli

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *