सोने, चांदी और लग्जरी कारों की बिक्री क्या कहलाती है
सुदीप पंचभैया।
देश में धनतेरस पर सोने, चांदी और लग्जरी कारों की बिक्री किस ओर इशारा कर रही है ? क्या ये लोगों की आर्थिक स्थिति के ठीक होने की ओर इशारा है या कथित परंपराओं के मकड़जाल या फिर देखा देखी का मामला है।
एक अनुमान के मुताबिक धनतेरस पर करीब 4500 करोड़ का सोना-चांदी की बिक्री हुई। इसमें 20 हजार करोड़ का सोना और 2500 करोड़ का चांदी शामिल है। धनतेरस के दिन सोने का दाम 75 हजार रूपये प्रति 10 ग्राम था। इसके बावजूद देश में 30-35 टन सोना घरों में पहुंच गया।
इस आंकड़े में एक खास बात देखी जा सकती है। सोने की बिक्री में गत वर्ष के धनतेरस के मुकाबले 15-20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। जबकि चांदी में 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। ये आंकड़ा बताता है कि लोगों की माली हालत साल दर साल कमजोर हो रही है। अच्छी आर्थिक स्थिति होती तो सोने की बिक्री गत वर्ष के मुकाबले बढ़ती।
बहरहाल, बड़ी आबादी वाले देश में एक दिन में 30-35 टन सोने की बिक्री कहीं से भी बेहतर आर्थिकी का संकेत नहीं है। हालांकि बाजार ऐसा दिखाने का प्रयास करता है। दरअसल, धनतेरस में खरीददारी परंपरा का मामला अधिक है। इस परंपराआ पर अब बाजार का मुलम्मा चढ़ चुका है। परिणाम परंपरा से अधिक अब देखा देखा का खेल भी हो गया है। इसके अलावा लोग धनतेरस के दिन को शुभ मानते हुए इस दिन पर बेटी/बेटा के विवाह के लिए भी थोड़ा सोना खरीद लेते हैं।
आबादी के हिसाब से देखें तो ये मात्रा बहुत अधिक नहीं है। मौजूदा समय में भारत में सोना, चांदी या गहने खरीदने वाली उम्र की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है। ये संख्या करीब 80 लाख है। इस तरह से दावे के साथ कहा जा सकता है कि एक खास दिन पर हुई सोने-चांदी की बिक्री देश के आम लोगों की आर्थिक स्थिति का कोई कन्फरमेटिव टेस्ट नहीं माना जा सकता है।
इसमें ये आंकड़ा नहीं है कि सोना-चांदी की खरीद में आम जन की संख्या कितनी रही। नौकरीपेशा लोगों ने कितना सोना-चांदी खरीदा। हाल के सालों में ये बात देखी जा रही है कि नौकरीपेशा लोग अब बाजार में जरूरत भर का ही खर्च कर रहे हैं। इसकी बड़ी वजह प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की अनिश्चितता और सरकारी नौकरी में पेंशन का न होना है। आने वाले सालों में बाजार पर इसका असर भी दिखने लगेगा।
इसी प्रकार धनतेरस पर लग्जरी वाहनों की बिक्री का भी यही मामला है। बैंकों ने वाहन खरीदने को आसान बना दिया है। बावजूद इसके लग्जरी वाहनों की खरीद में आम लोगों की संख्या ना के बराबर है। अक्सर देखा जा रहा है कि लग्जरी वाहनों की बिक्री लीकेज इकोनोमी के अधिक नजदीक है।
कुल मिलाकर धनतेरस या त्योहारी सीजन में सोने और चांदी की बिक्री इस बात का कतई संकेत नहीं है कि आर्थिक मोर्चे पर देश के हालात ऑल इज वेल हैं। ये नहीं भुलना चाहिए कि देश में गुरबत बढ़ रही है। 80 लाख लोगों को सरकार हर माह मुफत में राशन मुहैया करा रही है।