झूठ, फरेब और प्रचार का पर्यावरण

नकली साबित हो रही पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूकता
तीर्थ चेतना न्यूज
ऋषिकेश। पर्यावरण संरक्षण झूठ, फरेब और प्रचार के फेर में फंस गया है। परिणाम तमाम जागरूकता के बावजूद आदर्श पर्यावरणीय स्थिति तेज से छीज रही है।
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण संरक्षण अब किसी दिन का मोहताज नहीं रह गया है। देश के भीतर साल भर में होने वाले मंचीय कार्यक्रम और हो हल्ले में पर्यावरण नंबर एक पर है। ये विषय हर तरह वालों को खूब भाता है। इसके लिए न धर्म की आड़ लेनी होती है और न कोई खास उपक्रम करना होता है।
संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों स्तर पर पर्यावरण की माला सबसे अधिक जपी जा रही है। मंचों पर बड़े-बड़े पदधारियों के मुंह से इसको लेकर व्यक्त की जाने वाली चिंता का क्या कहने। ये मंचीय चिंता ही पर्यावरण के लिए चिता साबित होने लगी है। इस पर बहुत कम लोग ही गौर कर रहे हैं।
स्कूलों में नौनिहालों को जल, जंगल और संपूर्ण पर्यावरण के नारे याद हो गए हैें। पॉलीथिन उन्मूलन स्कूलों का प्रिय विषय बन गया है। इसे कबाउ़ से जुगाड़ में समाहित किया जा रहा है। हैरानगी की बात देखिए स्कूल में पॉलीथिन उन्मूलन के आए दिन कार्यक्रम होते हैं और बच्चे का बैग में किसी न किसी बहाने पॉलीथिन जरूर होता है। हाईकोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंद्ध के बावजूद पॉलीथिन का उपयोग खूब हो रहा है।
जंगल संस्थागत तौर पर विकास की सलीब चढ़ रहे हैं और व्यक्तिगत तौर पर कब्जाए/ अतिक्रमित किए जा रहे हैं। प्राकृतिक निकासियों का पता नहीं चल पा रहा है। प्रकृति के निजाम को कभी गरीबी तो कभी रोजगार के नाम पर ठेंगा दिखाया जा रहा है। लोगों के लोभ के सामने अब प्राकृतिक आपदा दो-चार दिन का हाय राम साबित हो रही है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए कानूनों का इन्फोर्समेंट सही से नहीं हो पा रहा है। दरअसल, सिस्टम कहीं न कहीं जिम्मेदारियों से बच रहा है। सिस्टम पर पांच साल के फ्रेम मंे बनने वाली व्यवस्था भारी पड़ती है।
कुल मिलाकर पर्यावरण झूठ, फरेब और प्रचार के फेर में फेस गया है। इसको लेकर दिखने और दिखाई जाने वाले जागरूकता/ चिंताएं नकली साबित हो रही हैं। इस नकली माहौल ने पर्यावरण संरक्षण के लिए वास्तव मंे काम करने वाली संस्थाओं और लोगों के प्रयास खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। हालात ये हैं कि हर वर्ष पौधा रोपण के लिए पहचाने जाने वाले लोगों को कोई ये पूछने वाला नहीं है कि पिछले साल के पौधों का क्या हुआ। संभवतः यहीं से पर्यावरण को लेकर सबसे बड़ा घालमेल शुरू हो रहा है।