स्कूली शिक्षा दिखा रही अभिभावकों को दिन में तारे

खर्चे में हर साल हो रही बेतहाशा वृद्धि
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। देश में स्कूली शिक्षा अभिभावकों को दिन में ही तारे दिखा रही है। हर साल स्कूली शिक्षा पर अभिभावकों की अच्छी खासी जेब ढीली हो रही है।
1985 के बाद बुनियादी शिक्षा की बेहतरी के नाम पर बहुत प्रयोग हुए। सरकारी स्कूल प्रयोगशालाएं बने। सरकारी स्कूलों में प्रयोग पर प्रयोग के बाद अब स्कूल खाली होने लगे हैं। इसके लिए आमतौर पर शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। जबकि जिम्मेदार कोई और है।
सरकारी स्कूलों में हुए इन प्रयोगों ने लोगों को प्राइवेट स्कूलों की शरण में जाने को मजबूर कर दिया। प्राइवेट स्कूलों के अपने तौर तरीके हैं। अभिभावकों को लगता है कि वहां उनके पाल्य का भविष्य सुरक्षित है। समाज में घर कर गई इस मन स्थिति का ही परिणाम है कि प्राइवेट स्कूलों की संख्या में साल दर साल बढ़ोत्तरी हो रही है।
बहरहाल, बुनियादी शिक्षा में हुए प्रयोगों का असली आउटपुट अब सामने दिख रहा है। स्कूली शिक्षा महंगी हो गई है। इसमें हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। बाजार का ऐसा ही असर रहा तो प्राइवेट स्कूल लोगों की पहुंच से बाहर भी होने लगेंगे। प्राइवेट स्कूल सिस्टम की पहुंच से एक तरह से आउट ऑफ रीच हो रहे हैं।
हालांकि समय-समय पर सिस्टम की ओर से हांके भी लगाए जाते हैं और दावे भी होते हैं। मगर, हकीकत अभिभावक अच्छे से जानते और समझते हैं। स्कूली शिक्षा में महंगाई का आलम ये है कि अभिभावक दिन में ही तारे देखने लगे हैं।
दर्जा एक से 12 वीं तक के स्कूली शिक्षा के खर्चे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। फीस से लेकर तमाम अन्य तामझाम ने समाज को एक तरह से बदल सा दिया है। उत्तराखंड राज्य में कभी फीस एक्ट तो कभी अभिभावक संघ की मजबूती की बात होती है। मगर, धरातल पर स्थिति जुदा-जुदा सी दिखती है।