उच्च शिक्षाः प्राध्यापकों की वर्षों की दुर्गम की सेवा हो गई शून्य
मामला संविदा से तदर्थ/ स्थायी हुए प्राध्यापकों का
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। सरकार और उच्च शिक्षा विभाग की जरूरत के मुताबिक वर्षों तक दुर्गम स्थित गवर्नमेंट डिग्री/पीजी कॉलेजों में संविदा पर सेवा देने वाले प्राध्यापकों की दुर्गम की सेवा तदर्थ/स्थायी होने पर शून्य मानी जा रही है।
राज्य गठन के बाद थोक के भाव खोले गए गवर्नमेंट डिग्री कॉलेजांे का संचालन संविदा प्राध्यापकों ने किया। दुर्गम/ अतिदुर्गम के कॉलेजों में संविदा प्राध्यापकों ने पूरे मनोयोग से वर्षों सेवाएं दी। कॉलेजों को सही से स्थापित करने में अहम रोल प्ले किया।
कुछ सालों बाद सरकार ने उक्त प्राध्यापकों को तदर्थ/ स्थायी किया। इसका आधार उक्त प्राध्यापकों को सेवा को बनाया गया। मगर, तबादला नियम मंे इन सभी प्राध्यापकों के साथ खेला कर दिया । इनकी दुर्गम सेवाओं को शासन/विभाग ने शून्य मान दिया।
अब वर्षों की दुर्गम की सेवा के बाद सुगम के कॉलेजों में पढ़ा रहे ऐसे प्राध्यापकों को फिर से दुर्गम के सेवा के लिए भेजा जा रहा है। कहा जा रहा है कि सुगम में उनके 10 साल हो गए और दुर्गम के उनके साल शून्य हैं। जबकि उक्त प्राध्यापक दुर्गम में वर्षों की सेवा दे चुके हैं।
हैरानगी की बात ये है कि संविदा सेवा को स्थायीकरण का आधार मानने उच्च शिक्षा विभाग तबादले के समय उक्त प्राध्यापकों की दुर्गम की सेवा को काउंट नहीं कर रहा है। उच्च शिक्षा के प्राध्यापकों के स्तर से एक स्वर में कभी ये मामला शासन या विभाग के सामने भी नहीं रखा गया।