भरसार विश्वविद्यालय ने विकसित की मूली की नई प्रजाति
जल्द किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा बीज
तीर्थ चेतना न्यूज
नई टिहरी। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्याल, भरसार द्वारा मूली की एक अत्यंत पौष्टिक एवं अधिक उत्पादन देने वाली प्रजाति को विकसित किया है।
2011 में स्थापना के बाद से भरसार विश्वविद्यालय की दूसरी फसल किस्म मूली ( यूएचएफ आर 12-1ए आईसी 0598463 ) सैंट्रल वैरायटी रिलीज कमेटी, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विमोचित हो गयी है। इससे पूर्व फसल सब्जी राई ( केदार राई ) वर्ष 2020 में विकसित हुयी थी जिसका प्रति वर्ष बीज उत्पादन कर वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी द्वारा किसानों को उपलब्ध करवाया जा रहा है।
इसी क्रम में 2024 में मूली की नयी प्रजाति विकसित कर विश्वविद्यालय ने नयी उपलब्धि हासिल की है। इस सब्जी मूली की प्रजाति ने भारत वर्ष के चौदह विभिन्न केन्द्रों पर लगातार पांच वर्षों के प्रशिक्षण काल में अत्यंत उत्कृष्ट एवं सुसंगत प्रदर्शन किया। तत्पश्चात वर्ष 2019 में मूली की यह प्रजाति विमोचन के लिये चयनित हुयी थी एवं कई वर्षाे के अथक प्रयास के बाद अंततः मूली की यह प्रजाति यूएचएफ आर 12-1 वर्ष 2024 में भारत वर्ष के पश्चिम हिमालयी राज्यों (जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड) हेतु अनुमोदित हो चुकी है।
विकसित प्रजाति सब्जी मूली यूएचएफ आर12-1 की मुख्य विशेषतायें मूली जीनोटाइप ( यूएचएफ आर 12-1ए आईसी 0598463 ) को गोल जड़ वाली मूली लैंडरेस से हाफ रिकरंट सिलेक्शन के माध्यम से विकसित किया गया है, जिसे लोकप्रिय रूप से दूनागिरी मूली के रूप में जाना जाता है।
यूएचएफ आर 12-1 की जड़ों को पकी हुई सब्जी या सलाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जड़ों में अजीबोगरीब सुगंध के साथ मीठा तीखा स्वाद होता है, जो इसे अब तक जारी किसी भी अन्य किस्म से अलग बनाता है। जड़ें गोल से थोड़ी पतली होती हैं, लंबाई और चौड़ाई में 10-12 सेमी, रंग में सफेद, खाने योग्य परिपक्वता पर 180-200 ग्राम वजन की होती हैं।
पत्तियां दाँतेदार किनारे वाली गहरी दांतेदार होती हैं, जो 7-8 पत्तियों के रोसेट में बनती हैं, 25-ं30 सेमी लंबी और गहरे हरे रंग की होती हैं।
यूएचएफ आर 12-1 की फसल 30गुणा 5 सेमी अंतराल पर बीजों की सीधी बुवाई करके उगाई जा सकती है। बुवाई के 55-60 दिनों के बाद जड़ें कटाई योग्य आकार प्राप्त कर लेती हैं। लंबी जड़ वाली किस्मों की तुलना में, यह 15-20 दिन बाद परिपक्व होती है। विकसित की गयी मूली प्रजाति की औसत जड़ उपज 418.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
इस सब्जी मूली को विकसित करने में विश्वविद्यालय में पूर्व में कार्यरत एवं वर्तमान में बॉंँदा विश्वविद्यालय में कार्यरत डॉ0 ए0 सी0 मिश्रा (प्रोफेसरए सब्जी विज्ञान एवं मुख्य प्रजनक), डॉ0 तेजपाल सिंह बिष्ट (एसिसटेंट प्रोफेसर, उद्यान एवं वर्तमान में हेमवती नन्दन गढ़वाल विश्वविधालय में कार्यरत), डॉ0 लक्ष्मी रावत (एसिसटेंट प्रोफेसर, पादप रोग विज्ञान विभाग) एवं अन्य स्टाफ सम्मिलित हैं।
भरसार विश्वविद्याल की वरिष्ठ पादप रोग वैज्ञानिक डॉ0 लक्ष्मी रावत द्वारा बताया गया कि भवि-ुनवजयय में इस मूली प्रजाति का व्यापक स्तर पर बीज उत्पादन कर उत्तराखण्ड राज्य एवं अन्य राज्य के किसानों को उपलब्ध करवाया जायेगा। डॉ0 लक्ष्मी रावत द्वारा बताया गया वर्ष 2019 में मूली की इस प्रजाति के विमोचन हेतु प्रस्ताव सैंट्रल वैरायटी रिलीज कमेटी को भेजा गया था एवं अथक प्रयासों के बाद वर्ष 2024 में यह प्रजाति जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए अनुमोदित की जा चुकी है।
डॉ. रावत ने कहा कि यह याोध कार्य विश्वविद्यालय में संचालित अखिल भारतीय समन्वित सब्जी शोध परियोजना के अंतर्गत पूर्व में डॉ0 ए0 सी0 मिश्रा, डॉ0 तेजपाल सिंह बिष्ट, डॉ0 लक्ष्मी रावत एवं अन्य स्टाफ द्वारा किया गया था । सब्जी राई की नयी प्रजाति विकसित होने पर डॉ0 लक्ष्मी रावत द्वारा इसे विश्वविद्यालय की एक महत्वपूर्ण उपलब्धी बताया जिससे आने वाले समय मे राज्य के किसानों को अत्यंत लाभ होगा। डॉ0 लक्ष्मी रावत द्वारा विश्वविद्यालय के के उच्च अधिकारियों का आधारभूत सुविधायें एवं सहायता उपलब्ध करवाने हेतु धन्यवाद व्यक्त किया गया।