शिक्षा के बाजार में लूटमार शुरू
देहरादून। दो साल के बाद एक बार फिर से शिक्षा के बाजार में लूटमार शुरू हो चुकी है। पेन, पेंसिल, कॉपी-किताब, जूते-मौजे सब कुछ की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है।
कोविड-19 के चलते दो वर्ष शिक्षा का बाजार मंदा रहा। इससे अभिभावकों ने भी खासी राहत महसूस की। अब एक बार फिर से शिक्षा का बाजार नए रंग-रूप के साथ ही नए तौर-तरीकों के साथ लूटमार के लिए तैयार है। बाजारी स्कूलों से संबंधित शिक्षण सामग्री की दुकानों में लूटमार शुरू हो गई है।
चुपके-चुपके प्राइवेट एडिशन की किताबें लगनी शुरू हो गई हैं। एनसीईआरटी की किताबें स्कूलों में फिर से दोयम दर्जे की बनने की ओर अग्रसर हैं। हालांकि दावे हैं कि स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही फल फूल रही हैं।
बहरहाल, शिक्षा के बाजार की कलाबाजी से सीधे-सीधे अभिभावकों की जेब ढीली हो रही हैं। ये ऐसी लूटमार है कि पीड़ित पक्ष आह करने करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा है। हर कोई घर में ही गुनगुना रहा है कि धीरे-धीरे बोल कोई सुनना ले की तर्ज पर ही आपास में बयां कर रहे हैं। सोशल मीडिया में जरूर अभिभावकों की कराह सुनाई दे रही है।
शिक्षा के बाजार की लूट से बेबस नजर आ रहे अभिभावक सरकारी शिक्षा में सब कुछ मुफ्त मिलने को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। परिणाम स्कूल चलो अभियान पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है। हद ये हो गई कि बेहद योग्य शिक्षकों से युक्त सरकारी स्कूल छात्र/छात्रों के लिए तरस रहे हैं।
सरकार बुनियादी शिक्षा को लेकर समाज के मनोविज्ञान को समझने में नाकाम रही है। इस नकामी में खूब फायदा भी हो रहा है। किसे फायदा हो रहा है इस बात को लोग 10 साल बाद समझेंगे। तब तक देर हो जाएगी। बहरहाल, सरकार नाकाम तो मजाल है कि विभाग सफल हो जाए। विभाग की सलामती इसी बात में है कि उसका रिजल्ट भी सरकार के रिजल्ट जैसा हो। यानि बहुमत जैसा।