दून विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया युवाओं का आहवान
मॉ, मातृभूमि और मातृभाषा का करें सम्मान
तीर्थ चेतना न्यूज
देहरादून। मॉ, मातृभूमि और मातृभाषा का हमेशा सम्मान करें। ये जीवन के किसी क्षेत्र में भी सफलता के लिए जरूरी है। इससे समाज और राष्ट्र की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त होता है।
ये कहना है देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का। राष्ट्रपति शुक्रवार को दून विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थी। उन्होंने विश्वविद्यालय की 33 मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया। समारोह में वर्ष 2021 के स्नातक, परास्नातक एवं पी एच डी के 669 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गयी। स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में 23 छात्राएं शामिल थीं। जिन्होंने विवि के दीक्षांत समारोह की थीम उभरती नारी शक्ति को चरितार्थ किया।
राष्ट्रपति ने दीक्षा प्राप्त विद्यार्थियों से कहा की मातृभाषा, मातृभूमि एवं माँ का सम्मान सफलता के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा, मातृभूमि एवं माँ दूसरों की नज़रों में चाहे जैसी भी हो, वे अपनी ही होती हैं। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए नौजवानो का इन तीनो के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होना जरूरी है। उन्होंने दून यूनिवर्सिटी को लोक भाषाओं – गढ़वाली, कुमाँऊनी एवं जौनसारी के विकास के काम करने के लिए सराहा।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी जमीन को कभी भूलना नहीं चाहिए। उन्होंने भारत के वसुधैव कुटुंबकम के दर्शन की बात भी की और कहा की अनेकता में एकता की हम बड़ी मिसाल हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि आप जीवन में जो भी बनें किन्तु भारतीयता बनाये रखें क्यूंकि वो आपको विविधता के लिए सहृदय बनाती है।
इस अवसर पर ले. ज. (सेवानिवृत) गुरमीत सिंह जी ने दीक्षित विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह उनके लिए केवल उत्सव का नहीं बल्कि मनन का भी दिन है। उन्होंने कहा कि वे सोचें की सफलता आपके लिए क्या मायने रखती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उपयोग केवल भौतिक नहीं वरन आध्यात्मिक समृद्धि के लिए भी करें।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने सम्बोधन में विद्यार्थियों से श्रीमती मुर्मू के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि श्रीमती मुर्मू की प्रगतिशील चेतना भीषण संघर्षों की ज्वाला में तपकर इतनी ऊँची उठी की वे भारत के उच्चतम संवैधानिक पद पर आसीन हो गईं। उन्होंने कहा कि महामहिम का सरल स्वाभाव, धैर्यशीलता एवं उनका आचरण हम सब के लिए पाथेय है। उन्होंने कहा की हम अमृतकाल में प्रवेश कर चुके हैं और यह अपने कर्तव्यों को पूर्ण मनोयोग से झोंकने का समय है।
उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने बताया की उत्तराखंड बाल वाटिका शुरू करने वाला पहला राज्य है। उन्होंने विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सफल रूप से लागू करने के लिए बधाई दी। उन्होंने महामहिम राष्ट्रपति को केदारनाथ एवं बद्रीनाथ की यात्रा के लिए आमंत्रित किया।
डॉ के कस्तूरीरंगन ने विद्यार्थियों को बधाई दी एवं उन्हें देश के लिए कर्मरत रहने को कहा। विश्वविद्यालय की वी सी, प्रो सुरेखा डंगवाल, ने सभी छात्र छात्राओं को बधाई दी। उन्होंने कहा की 33 स्वर्ण पदक विजेताओं में दो तिहाई (23) छात्राएं हैं जो कि अपने आप में समाज में नारी शक्ति के बढ़ते प्रतिनिधित्व का उदाहरण हैं। उन्होंने बताया की दून विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के बैनर, आमंत्रण पत्र को उत्तराखंड की दृश्य कलाओं से सुसज्जित किया गया है।
दीक्षांत समारोह का संचालन अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रोफेसर एच सी पुरोहित ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय कोर्ट कार्य परिषद एवं विद्या परिषद के सदस्यों ने शैक्षणिक शोभा यात्रा में भाग लिया जिसकी अगुवाई कुलसचिव डॉक्टर मंगल सिंह मन्द्रवाल ने की। शोभायात्रा में सचिव उच्च शिक्षा शैलेश बगोली प्रोफ़ेसर जी एस बत्रा प्रोफेसर तेजेंद्र शर्मा प्रोफेसर डीडी अरोड़ा प्रोफ़ेसर पीडी जुयाल प्रोफेसर एसपी सिंह प्रोफेसर कुसुम अरुणाचलम प्रोफेसर आरपी मंगाई प्रोफ़ेसर हर्ष डोभाल डॉ राजेश कुमार चेतना पोखरियाल डॉक्टर सविता कर्नाटक डॉक्टर नरेंद्र रावल आदि शामिल हुए।
इस अवसर पर महामहिम राष्टपति उत्तराखंड की पद्मश्री से सम्मानित स्त्रियों से मिलीं जो की स्त्री शक्ति को चरितार्थ करती हैं. इस मौके पर वे पद्मश्री बसंती बिष्ट जी, प्रसिद्ध जागर गायिका, पद्मश्री नीरजा गोयल, एवं पद्मश्री शीतल से मिलीं । उन्होंने अन्य महिलाओं से भी मुलाक़ात की जिन्होंने अपने बल बूते पर अति सराहनीय सामाजिक कार्य किये हैं।