हिन्दी को रसूख दिलाने में डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की अहम भूमिका

हिन्दी को रसूख दिलाने में डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की अहम भूमिका
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जन्म दिवस पर विशेष

डा. शोभा रावत।

भारत भूमि में अंग्रेजी और अंग्रेजीयत के तेजी से अंकुरित होने के दौर में हिन्दी को उसका रसूख दिलाने वालों में डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का नाम पहली पंक्ति में शामिल है। वो हिन्दी साहित्य के प्रथम डी. लिट हैं।

रत्न प्रसूता तपोभूमि उत्तराखंड में स्वनाम धन्य, मां भारती के वरद पुत्र,हिन्दी साहित्य के प्रथम अन्वेषी डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल को आज जन्म दिन है। आज ही के दिन देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल की लैंसडाउन छावनी के करीब “पाली“ गांव में 13 दिसंबर सन 1901 में उनका जन्म हुआ था।

डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने अपने अनुसंधान व मौलिक सृजन से हिंदी साहित्य में अपना विशेष स्थान बनाया। अधिकांशतः यही जानते हैं कि डॉ. बड़थ्वाल हिंदी साहित्य के प्रथम डी .लिट्. हैं, इसके अतिरिक्त वे एक निबंधकार, कहानीकार, समालोचक एवं संपादक भी रहे।

उन्होंने किशोरावस्था में व्योमचंद्र नाम से गद्य एवम अंबर नाम से काव्य सृजन किया। विद्यार्थी जीवन में “मनोरंजनी“एवम “हिलमैन“नामक पत्रिका का संपादन किया। उनको सन 1933 में डी. लिट्.की उपाधि से सम्मानित किया गया,जिसका विषय “हिंदी काव्य में निर्गुण धारा“(द निर्गुण स्कूल ऑफ हिंदी पोएट्री)था।

ऐसे समय में हिंदी साहित्य के साधक ने उपाधि प्राप्त की जब उच्च शिक्षा में हिंदी को पढ़ना लिखना भी उचित नहीं माना जाता था। बताते है िंक परीक्षकों की तीन सदस्यीय समिति के समक्ष जब उनका शोध प्रबंध प्रस्तुत किया गया तो उन्होंने इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की उनके द्वारा कहा गया कि यह शोध मात्र हिन्दी साहित्य नहीं बल्कि रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या करता है। उस दौर में ये बड़ी बात थी।

जब देश पराधीन था। अंग्रेजों का वर्चस्व था, ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हिन्दी के साधक ने निर्गुण ,नाथ, संत इत्यादि साहित्य पर निरंतर कार्य किया। था। या ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत देश में अंग्रेजी और अंग्रेजीयत तेजी से अंकुरित हो रही थी। समाज पर भी इसका गहरा असर दिखने लगा था।

ऐसी तमाम विपरित समय में भी उन्होंने हिन्दी को उसका रसूख दिलाने का काम किया। आपने जो मौलिक सृजन कर हिन्दी साहित्य में अनुसंधान का नया मार्ग प्रशस्त किया वह साहित्य के अनेक शोधार्थियों के लिए आधार बना अनुसंधान व खोज परंपरा का प्रवर्तन कर आपने आने वाली पीढ़ी को एक दिशा दी।हिन्दी साहित्य जगत एवम अनुसंधित्सु सदैव आपके ऋणी रहेंगे।

Tirth Chetna

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