उत्तराखंड की बेटी डा. निधि उनियाल पर सबको है गर्व

सुदीप पंचभैया।
उत्तराखंड की भावनाओं को अपने अहम से रौंदने वाली नौकरशाही को डा. निधि उनियाल का जवाब काबिलेतारीफ है। उत्तराखंड को इस बेटी पर गर्व है और हर कोई उसे सलाम कर रहा है।
उत्तराखंड राज्य स्थापना के दिन से ही अक्षम राजनीतिक नेतृत्व के चलते राज्य के लोग हर स्तर पर सजा भुगत रहे हैं। नौकरशाही अपने अहम से राज्य को लगातार रौंद रही है। परिणाम 22 सालों में राज्य आशातीत विकास तो दूर यहां के लोगों में भरोसा तक पैदा नहीं कर सका है। चारों ओर हताशा और निराशा का माहौल है।
नौकरशाहों का राज्य को रौंदना आम आदमी को कभी कभार दिखता या महसूस होता है। दरअसल, नौकरशाही विभिन्न तरीकों से राज्य को हर दिन रौंद रही है। राज्य स्तरीय नौकरशाही और सरकारी कर्मचारी इसे हर दिन महसूस करते हैं और झेलते हैं।
पहली बार दून मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डा. निधि उनियाल ने ऐसी नौकरशाही के खिलाफ मोर्चा खोलने का साहस किया। डा. उनियाल को ओपीडी छोड़कर स्वास्थ्य सचिव की पत्नी का चेकअप करने उनके आवास पर जाने के लिए मजबूर किया गया। आवास पर सचिव की पत्नी ने डाक्टर के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया।
तुर्रा ये कि मेडिकल कालेज के अधिकारियों ने डा. उनियाल पर सचिव की पत्नी से माफी मांगने का दबाव बनाया। इस दबाव को स्वीकार नहीं किया तो सचिव ने डाक्टर का तबादला कर दिया। डा. निधि उनियाल नहीं झूकी और नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
इस पर राज्य भर में हो हल्ला हुआ तो सरकार सकते में आ गई। सोशल मीडिया में लोगों की तीखी प्रतिक्रिया दिखी तो सीएम पुष्कर सिंह धामी को स्वयं दखल देना पडा। डा. निधि का तबादला स्थगित कर दिया गया हैं। मामले की जांच को कमेटी गठित करने की बात हो रही है। जांच में कम से कम आईएएस अधिकारी पर कोई आंच नहीं आने वाली है। इस प्रकार की आशंका व्यक्त की जा रही है।
पूर्व में राज्य स्तरीय अधिकारियों की इस प्रकार की शिकायतों पर ऐसा ही कुछ देखा गया। डा. निधि जैसे मामले उत्तराखंड के कर्मचारियों के साथ होते रहते हैं। अब ये राज्य की नियति बन चुकी है। राज्य स्तरीय अधिकारी/कर्मचारी ऐसी बातों को मीटिंग में ही भुलने में भलाई समझते हैं। स्वाभिमान जगाने का प्रयास करेंगे तो सरकारी सेवा में रहने तक कोप का शिकार होंगे।
आईएएस अधिकारियों के कोप से राज्य के अधिकारी/कर्मचारियों को बचाने का दम राज्य के राजनीतिज्ञों में नहीं है। ऐसा एक बार नहीं कई बार साबित भी हो चुका है। पहले पहले कर्मचारी पॉलिटिकल क्लास तक बातें पहुंचाते भी थे। मगर, नेताओं के नौकरशाही के शरणागत के दृश्य देख अब कर्मचारी भी चुप रहने में ही भलाई समझते हैं।
उत्तराखंड राज्य में ऐसा जो कुछ हो रहा है इसके लिए कहीं न कहीं हम सब जिम्मेदार हैं। हम 22 सालों से ऐसा राजनीतिक नेतृत्व चुनते रहे हैं जो दिल्ली से नियंत्रित होते हैं। परिणाम सिस्टम को उत्तराखंड से अधिक चिंता दिल्ली के आकाओं को खुश रखने की होती है। आका खुश तो उत्तराखंड में जो करना है और जैसा करना है करो।
नौकरशाही उत्तराखंड में ऐसा कर भी रही है। आए दिन ऐसे किस्से सुनाई भी देते हैं। ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने को जरूरी है कि उत्तराखंड का आवाम जागे। गलत बातों और स्वाभिमान पर ठेस पहुंचाने वाले प्रयासों का हर स्तर पर विरोध हो।