भागमभाग की बनकर न रह जाए चारधाम यात्रा

सुदीप पंचभैया ।
क्या चारधाम यात्रा इस बार भी भागमभाग की यात्रा तो साबित नहीं होगी ? पुण्य की कामना से आने वाले तीर्थ यात्रियों का यात्रा का सुखद अनुभव होगा ? क्या शासन/ प्रशासन ने पिछले साल की यात्रा के अनुभवों को इस बार की तैयारियों में शामिल किया है।
चारधाम यात्रा को लेकर ये तमाम सवाल हैं। चारधाम यात्रा की तैयारियों को लेकर शासन/प्रशासन गंभीर भी दिख रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं तैयारियांें की मॉनिटरिंग भी कर रहे हैं। कई बैठकों में यात्रियों की सुरक्षा और धामों के सुलभ दर्शन को प्राथमिकता बता चुके हैं। मुख्यमंत्री की मंशा के मुताबिक प्रशासन जरूर तैयारी भी कर रहा होगा।
चारधाम यात्रा की तैयारियां हर साल होती हैं। अधिकारी चाक चौबंद व्यवस्था का दावा भी करते हैं। समय से तैयारी पूरी करने की बात भी खूब होती है। मगर, यात्रा की भीड़ के सामने कुछ ही दिनों में व्यवस्थाओं में झोल दिखने लग जाता है। यानि तैयारियां में कुछ कमियां होती हैं।
चारधाम यात्रा गढ़वाल मंडल की आर्थिक लाइफ लाइन है। कई सौ सालों से ऐसा है। हाल के सालों में तमाम सुविधाओं के बावजूद चारधाम यात्रा भागमभाग की यात्रा साबित हो रही है। देवभूमि में चारधाम दर्शन/ पुण्य की जिस कामना के साथ यात्री यहां आते हैं वैसा अनुभव नहीं कर पाते हैं।
दरअसल, यात्रा की तैयारियों में यात्रा का अनुभव रखने वाले लोगों को शामिल नहीं किया जाता। तीर्थ पुरोहितों के पास सटीक जानकारी होती है कि किस माह यात्रा में किस क्षेत्र के अधिक लोग आंएगे। शहरी और ग्रामीण भारत का यात्रा में मूवमेंट कब-कब किस अनुपात में होता है। इसके मुताबिक कैसी व्यवस्थाएं होनी चाहिए।
यात्रा को अच्छे से नियंत्रित करने वाले गेट सिस्टम को प्रशासन समाप्त कर चुका है। परिणाम भीड़ या तो धामों में दिखती है या फिर ऋषिकेश और हरिद्वार में। शेष यात्रा चारधाम यात्रा मार्ग में जाम में फंसे रहते हैं। 10 दिन की चारधाम की यात्रा में घंटों के जाम से यात्रा भागमभाग की साबित होती है। परिणाम यात्री अच्छे अनुभवों के साथ नहीं लौट पाता।
यात्री न तो धामों में अच्छे से दर्शन कर पाता है और न ही देवभूमि उत्तराखंड की शांत वादियों का ही दीदार कर पाता है। यही नहीं भागमभाग की यात्रा से चारधाम यात्रा मार्गों की आर्थिकी भी प्रभावित हो रही है। जिस प्रकार की यात्रियों की भीड़ उमड़ती है बाजार में वैसा माहौल दूर-दूर तक नहीं दिखता। 24 घंटे यात्रा में दौड़ाभागी का माहौल रहता है। इसका राज्य को आशातीत लाभ नहीं हो रहा है।
गत वर्ष की चारधाम यात्रा में ऐसा ही कुछ देखा गया था। कई लोग रजिस्ट्रेशन न होने की वजह से ऋशिकेश से ही वापस लौट गए थे। प्रशासन को व्यवस्था बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। यात्रा चली मगर, भागमभाग ही साबित हुई। चारधाम यात्रा मार्ग पर वर्षों से विभिन्न सेवा कार्यों से जुड़े लोगों के यही अनुभव हैं। कई माध्यमों से उक्त लोग अपने अनुभवों को सक्षम मंचों तक पहुंचाते रहे हैं। इन पर कितना गौर हो रहा है या हुआ है ये कुछ दिनों में ही दिख जाएगा।
चारधाम यात्रा को गेट सिस्टम से नियंत्रित किया जाना चाहिए। ताकि जाम में फंसने के बजाए यात्रा मार्ग के तमाम छोटे-बड़े कस्बों में रौनक रहे। अब यात्रा मार्ग के हर छोटे-बड़े कस्बों में जन सुविधाओं में काफी सुधार है। ऋषिकेश से चारों धामों के यात्रा मार्ग में ऐसी व्यवस्थाएं गेट सिस्टम से ही संभव हैं। यदि ऐसा हुआ तो चारधाम यात्रा का राज्य के विकास में योगदान कुछ अच्छे से दिखेगा।
इसके अलावा निजी वाहनों और बाहरी राज्यों के वाहनों पर भी नियंत्रण की जरूरत है। हालांकि ये कार्य मुश्किल है। मगर, व्यवस्था बनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इससे चारधाम यात्रा स्मूथली चलेगी और भागमभाग जैसे हालत नहीं बनेंगे।