श्री बदरीनाथ धामः आखिर कहां जाएंगे तीर्थ पुरोहित

श्री बदरीनाथ। श्री बदरीनाथ धाम को बसाने वाले तीर्थ पुरोहित/हक हकूकधारी और स्थानीय निवासी धाम के आधुनिक हो जाने के बाद आखिर कहां जाएंगे। इस सवाल को व्यवस्था सुनने को तैयार नहीं है।
देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाने में असफल रही राज्य सरकार इन दिनों श्री बदरीनाथ धाम में मास्टर प्लान लागू करने के धरातलीय काम पर जुटी हुई है। इस काम में बाधक घर तोड़े जा रहे हैं। सरकार तोड़ फोड़ अपनी शर्तों पर कर रही है। जहां विरोध की संभावना है वहां परंपरागत तरीके बिजली/पानी की आपूर्ति बाधिक की जा रही है।
प्रशासन के स्तर से प्रभावितों से बात जरूर हुई है और हो रही है। मगर, उनके सवालों का प्रशासन तवज्जो नहीं दे रहा है। सरकार इस बात को सुनने को तैयार नहीं है कि श्री बदरीनाथ धाम की कूड़ी-पुंगड़ी मास्टर प्लान में लीन कराने के बाद आखिर तीर्थ पुरोहित/हक हकूकधारी और स्थानीय निवासी जाएंगे कहां।
सरकार द्वारा प्रचारित किए जा रहे मुआवजे की बदरीनाथ में ही क्या कीमत है हर कोई जानता है। मुआवजे के एक ही पैमाने को लेकर भी नाराजगी है। आखिर गांव और नोटिफाइड एरिया की जमीन/भवन को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है।
आरोप है कि प्रशासन अच्छी लोकेशन की प्रॉपर्टी को भी स्टमेट नहीं कर रहा है। कुल मिलाकर धाम को बसाने वालों पर बड़ा संकट है। सवाल ये कि आखिर मुआवजे की रकम लेकर जाएंगे कहां। हर किसी प्रभावित का अस्तित्व बदरीनाथ से है। क्या अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है।
फिलहाल एक बार फिर से मंत्री/ विधायकों ने प्रभावितों के फोन उठाने बंद कर दिए हैं। ऐसा ही देवस्थानम एक्ट के विरोध के समय भी हुआ था। तीर्थ पुरोहित गुणानंद कोटियाल का कहना है कि प्रशासन अपनी शर्तों पर प्रॉपर्टी लेना चाहता है। प्रभावितों की बात तो सुनी जानी चाहिए।
प्रियंक कर्नाटक ने जिला प्रशासन, राज्य शासन को ज्ञापन भेजकर स्पष्ट किया कि मास्टर प्लान के नाम पर उन्हें बेदखल करने का गांधीवादी तरीके से विरोध किया जाएगा।